क्या आप जानते है कि ज्यादातर भारतीय अभी भी शेयर बाजार से नफरत क्यों करते हैं

किसी भी चीज को समझने के पहले बहुत ज्यादा जरूरी है की  हम उस चीज की हिस्ट्री के बारे में जानें। आज मैं आपको स्टॉक मार्केट की एक ऐसी कहानी बताने वाला हूं जिसकी वजह से आज तक हमारे बड़े बुजुर्ग सोचते हैं कि स्टॉक मार्केट जुआ है, जिसकी वजह से आज तक हमारे बड़े बुजुर्ग सोचते हैं कि स्टॉक मार्केट सिर्फ बड़े लोगों का खेल है, जिसकी वजह से हमारी देश की इकॉनमी 10 से15 साल पीछे चली गई थी। यह कहानी है मन्नू मानिक और उनके Bear cartel की। 

the black cobra of indian stock market


Chapter Number 1: The Birth of the Black Cobra 

मन्नू मानिक एक बहुत सीक्रेट किस्म के इंसान थे। एक बहुत शातिर आदमी थे। यहाँ तक कि इनके बारे में ज्यादा इन्फॉर्मेशन ओपनली अवेलेबल ही नहीं है और लोग बस एस्टिमेट करते हैं कि इस इस टाइम से ऐसा कुछ हुआ होगा। बोलते हैं इनका जन्म हुआ 1948 से 1952  में से किसी एक साल में कभी हुआ था। 

वह एक मिडिल क्लास फैमिली से थे, लेकिन फैमिली के बारे में ज्यादा डिटेल्स अवेलेबल ही नहीं है। उन्होंने अपनी एजुकेशन कंप्लीट की। ये स्टॉक ब्रोकिंग इंडस्ट्री में आए और साल साल निकलते गए और इन्होने इंडियन मार्केट को फिर अच्छे से समझ लिया और समझने के बाद ये पाया कि इंडियन मार्केट को आराम से मैनिपुलेट किया जा सकता है। और वो बन गए एक ऑपरेटर। 

ऑपरेटर, ये एक ऐसा टर्म है जो आप बहुत कॉमन सुनोगे स्पेसिफिक उन लोगों से जो मार्केट में बहुत टाइम से हैं या जिसने  काफी पुराने टाइम का मार्केट देख रखा है। ऑपरेटर बेसिकली वो आदमी होता है जिसके पास बहुत सारा पैसा होता है और वो स्टॉक मार्केट में शेयर की प्राइस को मैनिपुलेट कर सकता है, इन्फ्लुएंस कर सकता है। 


कैसे स्टॉक मार्केट में डिमांड सप्लाई होती है? 

जब स्टॉक्स की डिमांड ज्यादा है, सप्लाई है कम तो प्राइस कहां जाती है ऊपर। वहीं पर जब स्टॉक की सप्लाई ज्यादा है और डिमांड है कम तो प्राइस जाती है नीचे। 

अब जो ये ऑपरेटर्स होते हैं, उनके पास इतना सारा पैसा होता था कि ये single handedly  एक स्टॉक की डिमांड इतनी ज्यादा बढा देते थे कि उसकी प्राइस खुद बढ जाती थी और single handedly , वो ही स्टॉक इतने सारा बेचते थे, इतनी भारी क्वांटिटी में बेचते थे कि सप्लाई ज्यादा हो जाये और डिमांड कम हो जाए जिससे प्राइस हो जाती थी नीचे।  और मन्नू मानेक दूसरी कैटेगरी में आते थे। 

उनका एक कोर बिलीफ था कि किसी भी स्टॉक की नीचे जाने की टेंडेंसी बहुत ज्यादा होती है कंपेयर टू ऊपर जाने के। और वो थे एक शॉर्ट सेलर ऑपरेटर। करते क्या थे, भर भर के शेयर्स को बेचो जिससे डिमांड कम, सप्लाई ज्यादा हो जाती थी। प्राइस खुद टूटती जाएगी, टूटती जाएगी, टूटती जाएगी, टूटती जाएगी और वही चीज सस्ते दाम में खरीद लो। 

इसको बोलते हैं शॉर्ट सेलर और यही थे मन्नू मानिक। बट वो जमाना, स्टॉक मार्केट कुछ ऐसा था ना। वो अकेले ऑपरेटर नहीं थे। 


Chapter Number 2: The Dark Age Of Stock Market. 

अगर मैं बात करूं की 1970s की 1980s की और early 90s की तो उस समय स्टॉक मार्केट का हमारे देश में एक ही मतलब था मैनिपुलेशन। उस समय अगर किसी को फंडामेंटल एनालिसिस करनी होती थी या किसी स्टॉक के बारे में कंपनी के बारे में जानना होता था तो सर वो पॉसिबल ही नहीं था। बिकॉज़ उस समय इन्फॉर्मेशन ही अवेलेबल नहीं थी। 

जो इंफॉर्मेशन, जो बैलेंसशीट, जो रिकॉर्ड इन्वेस्टर के हाथ में आते थे वो इतने पुराने हो जाते थे की उनका कोई फायदा नहीं होता था। और अगर एक इन्वेस्टर को एक्चुअली उस कंपनी के बारे में जानना है तो उसके पास सिर्फ एक तरीका होता था कि उस कंपनी को एक एनुअल जनरल मीटिंग होल्ड करनी पडेगी जहां पर बडे बडे शेयरहोल्डर्स, बडे बडे इन्वेस्टर्स, बडे बडे फंड हाउसेज आते थे और वहीं पर वो मैनेजमेंट कुछ बताएगी उस कंपनी के बारे में। 

सब का जाना तो पॉसिबल होता नहीं था। उस समय आप मानोगे नहीं फंडामेंटल एनालिसिस का मतलब क्या होता था? आप इन्वेस्ट करें और सिर्फ लोगों की कही-सुनी बातों में इन्वेस्ट करो। आप इनसाइडर ट्रेडिंग में इन्वेस्ट करो क्योंकि और कोई इंफॉर्मेशन अवेलेबल थी ही नहीं। इन्वेस्टर्स के हाथ पीछे बंधे हुए थे और बस इतने में कहानी रुकी थी। 

जो प्रमोटर्स थे, जो बडे बडे ब्रोकिंग हाउस थे, ये खुद अपने में ऑपरेटर थे। इनका खुद फायदा होता था सिर्फ स्टॉक प्राइस को मैनिपुलेट करके। कहने को तो SEBI 12 अप्रैल 1988 को बन गई थी पर SEBI की इस टाइम पर कुछ सिग्निफिकेंट थी नहीं। ना इनके पास ज्यादा पावर थी, न यह पूरी तरह से ऑटोनोमस थी। इसलिए जब भी आप सुनोगे लोग क्या बोलते हैं। 

SEBI is formed in 1992  क्योंकि वो साल था जब सेबी को एक्चुअल पावर  मिली। जब सेबी एक्चुअली कुड मेक डिफरेंस।इस स्टॉक मार्केट के डार्क ऐज ने  हमारे देश की इकॉनमी को 10 से 15 साल पीछे धक्का दे दिया। कैसे? क्योंकि इस समय  हमारे बड़े बुजर्गों के दिमाग में एक बहुत क्लियर चीज बैठ गई जिन्होंने ये पार्ट देखा था स्टॉक मार्केट का, की  स्टॉक मार्केट गैम्बल है। 

स्टॉक मार्केट में सिर्फ वो लोग पैसे कमाते हैं जो अमीर है। स्टॉक मार्केट में से वो लोग पैसे कमाते हैं जो इनसाइडर इन्फॉर्मेशन रखते हैं और यही स्टीरियोटाइप आज तक हमारी जेनरेशन में चलता आ रहा है। जिसकी वजह से हम इंडियन अपनी देश की इकॉनमी में पार्टिसिपेट नहीं कर पा रहे और हम इंडियन बडे ही नहीं है हम एडवांटेज ले ही नहीं पाए स्टॉक मार्केट की ग्रोथ का। 

और आपको इसका दूसरा साइड इफेक्ट बताऊँ । एक तो हमारी पर्सनल फाइनेंस खराब हुई हुई, दूसरी चीज ये हुई अब कोई स्टॉक मार्केट में  इन्वेस्ट करता नहीं है तो कोई कंपनी लेकर मार्केट में आ भी गया तो ज्यादा पैसे मिलेंगे नहीं। जिसकी वजह से ज्यादा कंपनी हमारे देश में खुल नहीं पाई। जिसकी वजह से हमारे देश में कभी इतनी बडी कंपनी बनी ही नहीं जो इतने सारी जॉब्स दें । 

कंपनी इस ओनली थिंग जो एक देश को स्ट्रांग बनाता है। अमेरिका सुपरपावर क्यों है? बिकॉज़ अमेरिका के पास है, गूगल , मेटा ,टेस्ला, ऐमजॉन, बड़े ब्रांड्स उनके पास है बड़े कंपनीज उनके  पास है। सबसे ज्यादा जॉब्स वो ही दे पाते है। लोग वहां ज्यादा कमाएंगे, गवर्नमेंट को ज्यादा टैक्स मिलेंगे। इसलिए अमेरिका ने dominent किया था उस सेंचुरी को बिकॉज ऑफ़ मैनिपुलेशन। हमारा देश कभी उस स्पेस में भी नहीं आ पाया। और अभी तो कहानी शुरू हुई है। यह कहानी और बदतर होती जाएगी।  


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Chapter Number 3: Manu Manek The Man Eater 

लेट 1980s और 1990 के शुरुवात में अगर आप एक फिक्स डिपॉजिट करते तो आपको बैंक इंटरेस्ट देता 8-12% इसीलिए  हमारे देशवासियों का एक ही माइंडसेट बन गया कि भाई सिर्फ एफडी में ही पैसे डालते रहो। और उस समय आपको उसी बैंक से अगर लोन लेना होता था तो आपको कितना इंटरेस्ट पडता था? 16% से 22% .  

तो सस्ते में तो लोन अवेलेबल था ही नहीं। पर तब भी कुछ बडे बडे लोग बडे बडे ट्रेडर्स लोन लेकर मार्केट में आते थे और एक स्टॉक को टारगेट करते थे कि स्टॉक की प्राइस ऊपर ले जाएंगे। स्टॉक को मैनिपुलेट करेंगे। इस स्टॉक में ऑपरेटर बनेंगे। उस समय सर्किल था बहुत छोटा हुआ करता था और मन्नु मानेक के कानों में ये सारी बातें पहुंच जाती थी। 

किसने कहां से उधार लिया और कौन से स्टॉक को टारगेट कर रहा है। अब मन्नू मानेक इन्फ्लुएंसर थे, उनके बहुत सारे स्टॉक ब्रोकर से बहुत क्लोज रिलेशन और  बहुत हेवी दोस्ती थी। वो स्टॉक ब्रोकर्स के पास जाते थे और उनको बोलते थे कि जिस स्टॉक को वो ट्रेडर्स टारगेट कर रहे हैं, बढाने के लिए वही स्टॉक वो ब्रोकर से मांगते थे। उधारी पर मुझे भर भर के स्टॉक दे दो, ब्रोकर दे देते। 

अब जब मार्केट में ये ट्रेडर्स स्टॉक खरीदने पर आते थे, डिमांड बढ़ाते थे, तो उस समय मनु मानेक और बेचते थे और बेचते थे और तब तक बेचते थे जब तक कि सारे ट्रेडर्स खत्म ना हो जाए। इसको बोलते हैं लैंडिंगऔर शॉर्टिंग। और ऐसा करते करते करते मनु मानेक ने ऑलमोस्ट हर बडे प्लेयर को उस समय मार्केट से wrap off  कर दिया था। 

और क्योंकि उनका complexion थोड़ा डार्क था तो उनका नाम पडा ब्लैक कोबरा और ऐसी ही चीजें करते करते करते वो कॉम्पिटिशन को साफ करते गए। उनका इन्फ्लुएंस इतना ज्यादा फैल गया कि बडे बडे इन्वेस्टर जिनको हम आज भी जानते हैं वो सब मन्नू मानेक के कार्टल को जॉइन करते गए। जैसे राधाकिशन दमानी, राकेश झुनझुनवाला, रामजी अग्रवाल, शंकर शर्मा, दिनेश डालमिया, निमेश कंपानी एंड अजय कयान। 


Chapter Number 4 : Bear Cartel 

मनु मानेक और ऐसे बहुत बडे बडे इन्वेस्टर्स का एक ग्रुप बन गया, और ये बन गया बेयर कार्टल। और उसको बेयर कार्टेल बोलना सही नहीं रहेगा ,असल में  ये हमारे देश के शेयर बाजार के गुंडे थे। जैसे ही किसी कंपनी की थोडी सी खराब न्यूज आ गई कि चलो डेब्ट ज्यादा बढ गया या कंपनी का प्रॉफिट शायद इतना बड़ा नहीं हुआ या वहां पर कुछ यूनियन में प्रॉब्लम आ रही है। 

ये सारा बेयर कार्टल उस कंपनी पर चढ जाता था और उस कंपनी के स्टॉक ऐसे बेचता था, ऐसे बेचता था, ऐसे बेचता था की उस कंपनी के शेयर के इन्वेस्टर्स सडक पर आ जाए। बडे बडे ट्रेडर्स जो बुल ट्रेडर्स बोले जाते थे वो मन्नू मानेक और उनके कार्टेल से इतना डर गए थे कि वो तो हल्के हलके  मार्केट से बाहर ही आ गए। इनकी दहशत का मैं आपको एक एग्जाम्पल दूं। 

उन्होंने एक स्टॉक को ₹100 से ₹1 में ले आए सात दिनों में।  ये थी इनकी मैनिपुलेशन की ताकत। मनु मानेक का  इन्फ्लुएंस इतना ज्यादा फैल गया उनकी दहशत , उनका डर इतना ज्यादा फैल गया कि बडे बडे स्टॉक ब्रोकर्स, बडे बडे प्रमोटर्स, बडे बडे ऑफिशियल्स इनके सामने जब आते थे ना उनके पैर कांप जाते थे, यह थी मन्नू मानेक की पावर। 

कंपनी के प्रमोटर्स इनके परमिशन और उनके आशीर्वाद से डिसाइड होते थे। कंपनी के आईपीओ भी इनकी परमिशन से डिसाइड होते थे और अगर मालिक किसी बडे ट्रेड में फंस गए तो होता क्या था? उनकी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में बडे बडे ऑफिशियल्स से दोस्ती थी और जैसे ही वो ट्रेड में फंसे, BSE दो तीन दिन के लिए बंद। इसको बोलते हैं गुंडा राज। 

बोलते हैं ना, अगर किस्मत में कुछ लिखा हो तो किसी का बाप उसको नहीं रोक सकता। हमारी देश की किस्मत में लिखा हुआ था कि हम बनेंगे दुनिया की नंबर वन इकॉनमी ऑफ़ वर्ल्ड और इसी देश में दो लोग पैदा हुए धीरूभाई अंबानी और हर्षद मेहता, जिन्होंने इस cartel को अपनी औकात दिखा दी। 

मैनिपुलेशन स्टॉक मार्केट में आज भी होती है और पेनी स्टॉक्स में होती है। चाहे रूल्स जितने भी स्ट्रिक्ट हो जाए, लोग तो मैनिपुलेट कर ही लेते हैं, क्योंकि  इन मैनिपुलेटर और बडे बडे ऑपरेटर्स को पता है कि इन छोटे स्टॉक्स में एक आदमी सिर्फ अपनी साइकोलॉजी से काम लेता है और आज भी हमारे देश में रिटेल इन्वेस्टर्स  फंडामेंटल में ध्यान भी नहीं देते हैं। 


Chapter Number 5 : धीरूभाई अंबानी से पंगा 

1977 में रिलायंस का आईपीओ आया था। उस समय का वो सबसे बडा आईपीओ और सबसे ज्यादा फेमस आईपीओ था। बिकॉज़ हमारे देश के बहुत सारे लोग रिलायंस के आईपीओ को देखकर शेयर बाजार में उन्होंने एंट्री ली थी। रिलायंस का इतना ज्यादा हाइप था, इतनी ज्यादा अच्छी बातें थी स्टॉक के बारे में की यह बोलै जाता था की धीरू भाई अंबानी वो है जो सड़क से आसमान में आये है। 

धीरूभाई अंबानी वो है जो अपने साथ पूरे देश को अमीर बना रहे हैं और ये आपको उनके स्टॉक से दिख जाएगा। 1977 में रिलायंस के स्टॉक की प्राइस थी ₹10, जो 1978  में हो गई ₹50 , 1980 में हो गई, ₹104 और 1982  में हो गई ₹186। ये चीज मन्नू मानेक और उनके कार्टल के लोगों को  बहुत ज्यादा खटकती थी, क्योंकि ये प्रॉब्लम थी ईगो की। 

उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि उनके होते हुए उनके राज में धीरूभाई अंबानी की तारीफ हो रही हो और धीरूभाई अंबानी को ज्यादा पावरफुल दिखाया जाए। मनु मानेक एक घमंडी आदमी थे तो बस वह वेट करते गए कि एक बार रिलायंस के स्टॉक की एक खराब न्यूज़ आये  और वो स्टॉक को तोडे और ये वेट खत्म हो गई 1982 में। 

इस समय रिलायंस ने कन्वर्टिबल डिबेंचर इश्यू किये लॉन्ग स्टोरी शॉट, इस समय एक अफवाह फैल गयी कि रिलायंस कंपनी एक फाइनेंशियल क्रंच में है और इसको पैसे की दिक्कत हो रही है। और बस मनु मानेक और पूरा कार्टल इस स्टॉक पर चढ गया और इतनी बुरी तरह चढा कि सिर्फ एक दिन में रिलायंस के स्टॉक की प्राइस को ₹131 से तोडकर ₹121 में ले आए। 

धीरूभाई अंबानी सर को पता चल गया कि देखो भाई  ब्लैक कोबरा आपके स्टॉक पर बैठ गए। अब धीरूभाई अंबानी वो आदमी थे जो अपने इन्वेस्टर के ट्रस्ट के लिए अपने इन्वेस्टर के फेथ के लिए किसी भी हद पार करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए रेडी थे। 

मनु मानेक के bear cartel ने 10 लाख शेयर बेचे, वहीं से रिलायंस के किसी 10 लाख शेयर खरीद लिए। अब आप लॉजिकली सोचोगे मनु मानेक का इतना बड़ा इन्फ्लुएंस था उस समय की उनको आराम से पता चल जाता कि ये स्टॉक खरीद कौन रहा है। बड़े मजे की बात ये थी कि जो भी रिलायंस के स्टॉक खरीदे जा रहे थे वो इंडिया से बाहर के इन्वेस्टर के द्वारा खरीदे जा रहे थे । 

जिस वजह से  मनु मानेक को पता ही नहीं चल रहा था ये स्टॉक खरीद कौन रहा है। मन्नू मानेक ने सोचा कोई नहीं , 1 लाख शेयर और  शॉर्ट कर दिए मतलब 1 लाख शेयर और खरीद लिए। उन्होंने 8 लाख शेयर शॉर्ट किए, 8 लाख और खरीद लिए। 

ये बात इतनी लंबी चली कि उस समय रिलायंस के 10 करोड़ के शेयर खरीदे गए थे और धीरूभाई अंबानी ने इस ब्लैक कोबरा को अपने हाथों में जकड़ लिया था। जिसमें मनु मानेक को खुद हार माननी पड़ी और बाद में पता चला वो धीरूभाई अंबानी ही थे जो अपने बाहर के फ्रेंड के थ्रू रिलायंस के स्टॉक खरीदवा रहे थे। मैं आपको बोला था ना की धीरूभाई अंबानी  वो आदमी थे जो अपने इन्वेस्टर्स के ट्रस्ट और भरोसे के लिए किसी भी हद तक जाने को रेडी थे। 


Chapter Number 6 : हर्षद मेहता का थप्पड़

हर्षद मेहता, बिग बुल और दूसरी तरफ मनु मानेक उनका बेयर कार्टल। इनके शेयर बाजार में बहुत सारे फेस ऑफ हुए। जैसे कि जब भी न्यूज आ जाती और हर्षद मेहता को पता चल जाता कि मनु ने इस स्टॉक को तोड़ा, वहीं पर हर्षद मेहता उस स्टॉक को खरीदने लग जाते और हर्षद मेहता हर बार इसलिए जीत पाते थे बिकॉज़ उनकी पब्लिक रेपुटेशन बहुत अच्छी थी। लोग उन पर भरोसा करते थे। हमारे देश के इन्वेस्टर उस समय हर्षद मेहता की पूजा करने लग गए थे। 

जैसे हर्षद मेहता कोई शेयर खरीदते, सब खरीदने बैठ जाते। जिस वजह से बेयर कार्टेल इसको संभाल नहीं पाता।  तो मनु मानेक ने पहले किया हर्षद मेहता की रेपुटेशन पर अटैक कि हर्षद मेहता ने ये उधारी पे नहीं करी ,वो उधारी पे नहीं करी । जबकि बहुत सारे केस में हर्षद मेहता वो उधारी पहले क्लियर कर चुके थे। पर मन्नू मानेक ने ऐसी न्यूज़ फ्लोट कर करके हर्षद मेहता की क्रेडिबिलिटी पर बहुत बडा डेंट लगा दिया। 

और ऐसा बोलते हैं कि हर्षद मेहता को इस वजह से 1 करोड़ तक का नुकसान हो गया। और हर बार हर्षद मेहता स्टॉक को इतना ऊपर ले जाते bear market  को इस तरह तोड़ते कि मनु मानेक का उनका पूरा कार्टेल हैरान था कि हर्षद मेहता के पास इतना पैसा आ कहां से रहा है।  

जो फिर खुलासा हुआ बैंक के बीच से जो खुलासा हुआ था सुचिता दलाल के द्वारा। और कहानी अभी भी खत्म नहीं हुई है। सुचिता दलाल ने अब एक सेबी पर रिपोर्ट निकाली है कि कैसे अभी भी स्टॉक मार्केट में manipulation हो रही है और SEBI इसको कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं। 

Vinod Pandey

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