जाने कैसे एक श्राप से ख़त्म हुआ नेपाल का शाही परिवार ?| Mysterious Facts in Hindi

साल 2001, 1 जून शुक्रवार की रात नेपाल के महल में पार्टी का आयोजन किया गया। पार्टी के खास मेहमान थे महाराजा बीरेंद्र शाह के बेटे दीपेंद्र शाह। इस पार्टी में प्रिंस दीपेंद्र ने ज्यादा शराब पी ली। तब उन्हें महल के एक बेडरूम में ले जाकर सोने के लिए छोड़ दिया गया। 

कुछ देर बाद वे तीन गन के साथ आए और पिता पर गोलियां चला दी। इसके बाद मां, भाई बहन सहित परिवार के नौ लोगों पर गोलियां चला दी। फिर बंदूक की नली अपनी कनपटी पर रखी और ट्रिगर दबा दिया। 

इस घटना को हुए 23 साल बीत गए हैं। तब से लेकर अब तक एक सवाल का जवाब ढूंढा जा रहा है कि दीपेंद्र ने ऐसा क्यों किया? इसका जवाब किसी के पास नहीं है, क्योंकि जवाब सिर्फ और सिर्फ दीपेंद्र के पास था, जिन्होंने घटना के तीसरे दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 

लेकिन कुछ थ्योरी जरूर है जिसमें दीपेंद्र शाह और देवयानी के अधूरे इश्क का नतीजा, संत का श्राप, भारत का हाथ, छोटे भाई ज्ञानेंद्र की साजिश बताई जाती है। लेकिन क्या ये संभव है कि नशे की हालत में कोई ऐसा भी कर सकता है। जानेंगे इस लेख  में इन सभी थ्योरीज के बारे में । 


What Is The Mystery Of Nepal Royal Massacre ?


नेपाल के राजशाही पर संत का श्राप 

देखिये भारत के उत्तर में हिमालय की गोद में बसा हुआ एक छोटा सा देश है नेपाल। इस देश की लोक कथा  के अनुसार आज के इस नेपाल की स्थापना साल 1769 में पृथ्वीनारायण शाह ने की थी, जब उन्होंने नेपाल की तीन रियासतों को जीतने के बाद खुद को यहां पर राजा घोषित कर दिया। और इस राज की समाप्ति एक संत के श्राप के कारण साल 2008 में हुई। 

तो कहानी ये है कि नेपाल के जंगलों में एक दिन यहां के प्रिंस की मुलाकात एक साधू से होती है। इस साधू ने इससे एक कटोरा दही मांगी। वो अपने महल आये और दही का कटोरा लेकर वहां पहुंच गया। फिर साधू ने सारी दही पी ली और कुछ देर बाद उसने सारी दही उसी कटोरे में उगल दी। 

फिर साधू ने जो उस कटोरे को प्रिंस को देते हुए ये कहा कि ये सारी दही तुम पी लो । प्रिंस ने गुस्से में कटोरा जमीन पर गिरा दिया जिस कारण उसके दोनों पैर दही से भीग गए। नेपाल के लोक कथा  के अनुसार ये साधू बाबा गोरखनाथ थे। नेपाल के गोर्खा साम्राज्य के संरक्षक। 

और जो युवक दही लेकर उनके सामने आया था वो आधुनिक नेपाल के संस्थापक सम्राट पृथ्वीनारायण शाह थे। अब आगे की कहानी ये है कि इस घटना के बाद बिना कुछ बोले पृथ्वीनारायण शाह वहां से जाने लगे। गोरखनाथ उनके इस व्यवहार से क्रोधित हो गए। फिर उन्होंने अपना परिचय दिया। 

अब पृथ्वीनारायण शाह दंग रह गए। इससे पहले कि राजा कुछ कह पाते गोरखनाथ ने पृथ्वीनारायण शाह के पैरों की ओर देखते हुए यह श्राप दे दिया था कि इस भूमि पर तुम्हारे वंश का शासन उतनी पीढ़ियों तक रहेगा जितनी तुम्हारे पैरों की उंगलियों में दही लगी है। 

शाह ने देखा कि उनके दोनों पैरों की दसों उंगलियां दही में डूबी हुई है। फिर गोरखनाथ ने कहा कि तुम्हारे राज्य का 11वां राजा अंतिम होगा। उसके बाद तुम्हारा राज जो है खत्म हो जाएगा। अब कहानी के अनुसार बिरेंद्र नेपाल के 10वें राजा थे। 

इस कारण नेपाल के लोगों का मानना है कि 2001 में राजा बीरेंद्र के साथ जो हुआ वो उसी साधु के श्राप का नतीजा था। इस घटना के बाद नेपाल में काफी उथल पुथल मच गई। आखिर में ये निर्णय लिया गया कि अब देश से राजा रानी का दौर खत्म होगा और डेमोक्रेसी लागू होगी, और हुआ भी यही। 


आखिर 2001 में राजा बीरेंद्र सहित उनके परिवार के साथ क्या हुआ था? 

दोस्तों , नेपाल में कई सालों से किंग एंड प्रिंसली स्टेट का शासन चल रहा था। इसमें दरअसल होता ये है कि राजा का बेटा ही राजा बनता है। इस कारण जब यहां के राजा महेंद्र शाह की साल 1972 में मृत्यु हो जाती है तो इनके बड़े बेटे बीरेंद्र शाह को 31 जनवरी 1972 को नेपाल का नया प्रिंस बना दिया जाता है। 

ये शाह राजवंश के 10वें प्रिंस थे। उनकी शादी ऐश्वर्या राणा से हुई और इन दोनों के तीन बच्चे हुए। दीपेंद्र शाह, श्रुति शाह और निरंजन शाह। जब नेपाल के महाराजा बीरेंद्र शाह ने साल 1972 में देश की गद्दी संभाली तो इन्होंने एक परंपरा शुरू की थी। 

ये परंपरा थी कि हर नेपाली महीने के तीसरे शुक्रवार को एक शाही पार्टी आयोजित करने की।  इस पार्टी में सिर्फ शाही लोगों को ही बुलाया जाता था। साल 1972 से लेकर मई 2001  तक ये बिना किसी प्रॉब्लम के बड़े ही धूमधाम के साथ आयोजित होता रहा। 

इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 1 जून 2001 की शाम को नेपाल नरेश के निवास स्थान नारायणहिती महल के त्रिभुवन सदन में पार्टी का आयोजन किया गया। पार्टी में केवल शाही परिवार के लोगों को ही आमंत्रित किया गया और इस बार मेजबान थे किंग बीरेंद्र के बड़े बेटे प्रिंस दीपेंद्र शाह, जो लंदन से आए थे। 

प्रिंस दीपेंद्र अपने एडीसी मेजर गजेंद्र बोहरा के साथ पहुंचते हैं। फिर इनकी मां महारानी ऐश्वर्या और पिता महाराजा बीरेंद्र आते हैं और निजी पार्टी होने के कारण अंदर किसी भी बाहरी लोगों को जाने की अनुमति नहीं थी। 

अब पार्टी शुरू हुई तो कई लोग इस पार्टी में खाने पीने लगे तो कई आपस में निजी बातचीत करने लगे। इसी बीच दीपेंद्र अपनी मां के पास जाते हैं, लेकिन ये नशे में धुत थे। ये कुछ बोलना चाह रहे थे, लेकिन उनकी जीभ लड़खड़ाने और बॉडी कांपने लगती है। 

फिर कुछ ही मिनटों में वो फर्श पर गिर जाते हैं। अब वहां मौजूद लोग उन्हें उठाकर उनके बेडरूम में ले जाकर लिटा देते हैं। इसके बाद कमरे की लाइट बुझाकर सभी लोग बाहर आ जाते हैं। अब कुछ देर बाद ये बाथरूम में जाकर उल्टी करते हैं। फिर उन्हें थोड़ा होश आता है। 

तब ये अपनी फेवरेट सैन्य वर्दी पहनते हैं और अपनी फेवरेट 9mm पिस्टल MP-5 के साथ मशीनगन और कोल्ट राइफल अपने हाथों में लिए हुए पार्टी वाले हॉल में आ जाते हैं। दीपेंद्र को दरअसल हथियारों का बड़ा शौक था, इसलिए किसी ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। 

तभी इनके बंदूक से निकली एक गोली महल की छत पर लगी और उसका कुछ प्लास्टर नीचे गिर गया। सभी को लगा कि शायद गलती से ट्रिगर दब गया होगा, लेकिन ये सभी गलतफहमी में थे। इसके तुरंत बाद दीपेंद्र ने राजा बीरेंद्र की तरफ बंदूक तानी और दनादन तीन गोलियां चला दीं। 

अब राजा वहीं पर गिर गए। तभी महाराज बीरेंद्र के छोटे भाई धीरेंद्र शाह ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की। दीपेंद्र ने उन पर भी गोली चलाई और अब वो हर किसी पर गोली चलाने लगे। 3 से 4 मिनट के बीच गोलीबारी खत्म हो गई, लेकिन गोलीबारी खत्म होती इससे पहले दीपेंद्र ने बंदूक अपनी कनपटी पर रखी और ट्रिगर दबा दिया। 

कुल नौ लोग इनकी गोली का शिकार हुए। इसमें दीपेंद्र के पिता राजा बीरेंद्र और मां रानी ऐश्वर्या और भाई प्रिंस निर्जन और बहन राजकुमारी श्रुति भी शामिल हैं। शाही परिवार के सदस्यों को पहले सैन्य अस्पताल ले जाया गया। जब इन्हें यहां पर मृत घोषित कर दिया गया तो इन सभी को यहां से काठमांडू में बागमती नदी के तट पर पशुपति नाथ आर्य घाट कॉम्प्लेक्स ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। 

अस्पताल में दीपेंद्र अभी भी जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे, जबकि नेपाल के लोग पूरी तरह से इस घटना से अनजान थे। 2 जून की रात 11:00 बजे घोषणा की गई कि नेपाल के राजा की मृत्यु हो गई है और अब इस राज्य के नए राजकुमार दीपेंद्र को बनाया जा रहा है। 

युवराज दीपेंद्र अभी शासन करने की स्थिति में नहीं थे तो उनकी जगह राजकुमार ज्ञानेंद्र रीजेंट की तरह काम करेंगे। नेपाल का सरकारी टेलीविजन इस घटना पर चुप था। क्या हुआ, कैसे हुआ, ये जनता को विदेशी समाचार चैनलों से पता चल रहा था। 

हर किसी के मन में एक ही सवाल था क्या हुआ और किसने किया? कुछ दिनों बाद महाराज बीरेंद्र सिंह की चचेरी बहन और दीपेंद्र की बुआ केतकी चेस्टर ने इस राज से पर्दा उठाया। ये उस रात पार्टी में मौजूद थी लेकिन उनकी जान बच गई थी। 

चेस्टर ने इस हत्याकांड के लिए दीपेंद्र और देवयानी के बीच की अधूरी प्रेम कहानी को जिम्मेदार ठहराया। दरअसल जब युवराज दीपेंद्र इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे तो यहां उनकी मुलाकात देवयानी से हुई। दोनों में प्यार हो गया। 

फिर जब दीपेंद्र लंदन से नेपाल लौटे तो उन्होंने अपनी मां रानी ऐश्वर्या को देवयानी के बारे में बताया और कहा कि देवयानी से शादी करना चाहता है। लेकिन जैसे ही रानी ऐश्वर्या ने ये बात सुनी तो वो परेशान हो गई। देवयानी ग्वालियर परिवार से थी। 

वहीं ऐश्वर्या और देवयानी के परिवार के बीच पुरानी दुश्मनी थी। ऐश्वर्या ने शादी से साफ इनकार कर दिया और वहां से चली गई। इस बात का अंदेशा तो प्रिंस को पहले से ही था क्योंकि दुश्मनी की सच्चाई को ये भी जानते थे। उन्होंने अपनी मां को समझाने का निश्चय किया। 

एक दिन फिर अपनी मां के पास आए और शादी की बात करनी चाही, लेकिन मां ने फिर से मना कर दिया। इस बार दीपेंद्र ने भी गुस्से में साफ कह दिया कि वो देवयानी से ही शादी करेंगे। इस घटना के बाद उन्हें खर्च करने के लिए उतना पैसा नहीं मिल रहा था, जितना वे चाहते थे। 

इसी बीच दीपेंद्र का पॉलिटिकल इंटरफेरेंस और उनके पिता के फैसले एक दूसरे से उलट साबित हो रहे थे। इन सब से दीपेंद्र काफी निराश हो गए थे और उनकी मेंटल स्थिति डामाडोल हो गई थी। रानी ऐश्वर्या को ये एहसास हो गया था कि भाई दीपेंद्र को अपनी पसंद से शादी करने से रोकना उनके लिए बहुत मुश्किल होगा। 

इसलिए उन्होंने दीपेंद्र को साफ कह दिया कि अगर उसने इस मामले में अपने माता पिता की बात नहीं मानी तो उसे अपनी शाही उपाधि से हाथ धोना पड़ेगा। अब जब 1 जून 2001 को महल में पार्टी का आयोजन किया गया तब ये मौका था सबके सामने किसी नतीजे पर पहुंचने का लेकिन नतीजा कुछ और ही निकला। 

हताशा के चलते उसने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। इस दिन दीपेंद्र ने शाम से ही नशा करना शुरू कर दिया और बेकाबू हो गया। जब वो सबके सामने अपनी मां और पिता पर चिल्लाया तो कुछ रिश्तेदार उसे कमरे में छोड़ आए और जब वो कमरे से निकला तो आर्मी के जवान की तरह और डेडली वेपन से लैस होकर निकला। 

अपने माता पिता समेत राजपरिवार के तकरीबन नौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया और खुद को भी गोली मार ली। इस हत्या के पीछे दीपेंद्र का क्या मकसद हो सकता है तो इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था। अब इस सवाल का जवाब पाने के लिए एक जांच कमेटी बनाई गई। 

इस समिति में नेपाल के चीफ जस्टिस केशव प्रसाद उपाध्याय और नेपाली पार्लियामेंट के चेयरमैन तारानाथ राणा भट्ट शामिल थे। एक हफ्ते की जांच के बाद रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट में सैकड़ों गवाहों के बयानों में बताया गया कि इस हत्या के पीछे दीपेंद्र का हाथ था। 

अब एक ही सवाल रह गया कि भाई दीपेंद्र ने ऐसा किया क्यों? इस सवाल का जवाब सिर्फ दीपेंद्र दे सकता था, लेकिन वो इस हालत में नहीं था। खुद को भी गोली मारने के बाद फिर प्रिंस दीपेंद्र को कभी होश नहीं आया और 4 जून 2001 को सुबह 03:40 बजे पर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। 

उनकी मृत्यु के बाद तीन दिन के अंदर अंदर राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र नेपाल के तीसरे किंग बने। लेकिन नेपाल मानो  इस सदमे से कभी उभर ही नहीं पाया और साल 2008  में नेपाल ने राजशाही छोड़कर डेमोक्रेसी को अपनाया। 

अनवांटेड, डिस बिलीव और डिस क्वालीफिकेशन के टॉन्ट  को झेल कर किंग बने ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह कभी जनता का विश्वास नहीं जीत सके। नेपाल के लाखों लोग उन्हें रॉयल पैलेस की उस घटना  के लिए जिम्मेदार मानते थे। 

साल 2001 के बाद नेपाल में माओइस्ट मूवमेंट तेजी से बढ़ा। ज्ञानेंद्र इस चुनौती का सामना करने में असफल साबित हुए। नेपाल में लोगों की राजशाही में इतनी गहरी आस्था थी कि वे राजा को भगवान विष्णु का अवतार मानते थे। 

लेकिन गरीबी , बेरोजगारी और शासन में रिप्रेजेंटेशन की कमी से जन्मे माओइस्ट मूवमेंट के कारण नेपाल की एक बड़ी आबादी ने राजशाही के खिलाफ विद्रोह कर दिया। ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह को नेपाल के पॉलिटिकल पार्टीज और माओइस्ट मूवमेंट के सामने झुकना पड़ा। 

28 मई 2008  को संविधान संशोधन के तहत नेपाल में राजशाही खत्म कर दी गई। इस निर्णय से नेपाल के महाराज का दर्जा आम नागरिकों के समान ही हो गया। 11 जून 2008  को महाराज ज्ञानेंद्र ने नारायणहिती पैलेस खाली कर दिया था। इस प्रकार महाराजा पृथ्वीनारायण शाह की 11वीं पीढ़ी को नेपाल से विदा लेनी पड़ गई। 


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तो क्या ये संत की भविष्यवाणी सच होने का समय था? 

अब इन सबके बीच आम लोगों के मन में कई सवाल उठने लगे थे। शक की सुई हमेशा किसी न किसी पर घूमती रही। इसी बीच नेपाल के तत्कालीन राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र पर भी शक हुआ क्योंकि वो उस रात महल में मौजूद नहीं था। 

इसके बाद इस हत्याकांड में बीरेंद्र के रिश्तेदार मारे गए, लेकिन ज्ञानेंद्र के रिश्तेदार बच गए और इसके बाद आरोप लगा कि ज्ञानेंद्र राजा बनना चाहते थे और उन्होंने गद्दी हथियाने के लिए साजिश रची होगी। फिर नेपाल राजघराने के राजकुमार पारस की भूमिका पर भी उंगलियां उठी थी। 

जिस वक्त हादसा हुआ उस वक्त दरअसल प्रिंस पारस शाही महल में मौजूद थे, लेकिन उन्हें खरोंच तक नहीं आई। पहले भी कई मामलों में पारस पर उसके कैरेक्टर के कारण संदेह किया गया था। क्योंकि ये हमारे पड़ोसी देश का मामला था तो भारत का नाम भी इस हत्याकांड से जुड़ गया। 

अब साल 2010  में रॉयल पैलेस के मिलिट्री सेक्रेट्री जनरल विवेक शाह ने एक किताब लिखी "मैले देखेको दरबार"। किताब में उन्होंने दावा किया है कि ये सब भारत ने किया है ताकि नेपाल में लोकतंत्र आ सके। 

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और कम्युनिस्ट नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने भी खुले मंच से कहा था कि इस हत्याकांड के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का हाथ है। हालांकि ये बात पूरी तरह से झूठ है। फिलहाल आज की कहानी जानकर आपको कैसा लगा हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।

Vinod Pandey

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