साल था 2016 भारत के बड़े बड़े इंस्टीट्यूट के रिसर्चर्स मिलकर एक दिन एक खोज के लिए निकले। और उन्होंने एक एक ऐसी खोज की जिसके पूरे होने से इतिहास की कुछ बड़े बड़े रहस्यों से पर्दा उठ सकता था, जिससे बरसों पुराने कई सारे अनसुलझे सवालों का जवाब भी मिल सकता था।
ऐसी रिसर्च जिसे पूरा करते करते सात साल लग गए पर सात साल के बाद जब इसका रिजल्ट आया तो वो रिजल्ट सबको हैरान कर देने वाला था। रिसर्च में पता चला था एक ऐसे शहर के बारे में जिसे इंडिया की हिस्ट्री में ओल्ड लिविंग सिटी बताया जाने लगा।
जिस शहर की यहां पर बात की जा रही है उसे अक्सर पीएम मोदी के नाम से भी जोड़ा जाता है। पर आखिर ये शहर है कौन सा, कहां पर है। क्या कुछ खास है यहां पर और क्या रही है इसकी हिस्ट्री। इन सब बातों के बारे में जानेंगे हम आज के इस आर्टिकल में।
कैसे गुजरात में मिला दुनिया का सबसे पुराना शहर?
देखिये जिस जगह की हम यहां पर बात कर रहे हैं वो है गुजरात के मेहसाना डिस्ट्रिक्ट में बसा एक शहर वाडनगर, जिसे आनन्दपुर, अनंतपुर, चमत्कारपुर, सिकंदपुर जैसे कई सारे नामों से जाना जाता है। ये वही जगह है जिसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पैतृक गांव भी बताया जाता है।
पर आज इसे इंडिया की ओल्ड लिविंग सिटी क्यों माना जा रहा है, ये जानने के लिए हमें साल 1992 में जाना पड़ेगा। 1992 में एक दिन वाडनगर में एक किसान अपने खेत में हल जोत रहा था। तभी अचानक उसे अपनी जमीन के नीचे एक अजीब सी चीज मिली।
अब देखने में तो वो एक मूर्ति जैसा कुछ लग रहा था जिस पर शायद कुछ लिखा भी हुआ था पर ना तो उसे कुछ लिखा हुआ समझ आ रहा था और ना ही यह समझ में आ रहा था कि भई वो मूर्ति है किसकी? तो बिना देर किए वो किसान अपने पास के एक पुलिस स्टेशन जाता है और पुलिस को वो मूर्ति दिखाता है।
मूर्ति को देखकर पुलिस भी काफी हैरान रह गई। उन्हें भी मूर्ति देखकर कुछ खास समझ तो आया नहीं पर देखने में उन्हें वो मूर्ति काफी पुरानी लग रही थी। अब पुरानी चीजों का नाम आते ही पुलिस के दिमाग में आया कि उन्हें आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी कि एएसआई (ASI) को इसकी खबर देनी चाहिए।
एएसआई के आर्कियोलॉजिस्ट यह जानने के लिए काफी एक्साइटेड थे कि वो मूर्ति किसकी है। पर जैसे ही उन्होंने उस मूर्ति को देखा तो उन्हें वो मूर्ति कुछ देखी देखी से लग रही थी। थोड़ा सोचने पर उन्हें याद आया कि ऐसी कई मूर्तियां तो उन्हें कई अलग अलग जगहों पर पहले भी मिल चुकी हैं।
मूर्ति पर जो लिखा हुआ था वो तो बस उस वक्त पढ़ा नहीं जा सका लेकिन उन्हें लग रहा था कि शायद उनके हाथ कुछ ऐसा लगा है जिससे शायद वो भारत के इतिहास में एक नई कड़ी जोड़ सकते हैं। दरअसल वो मूर्ति एक बुद्धिस्ट की थी।
बौद्ध धर्म में बुद्धिस्ट उन्हें कहा जाता है जो बुद्ध बनने या मोक्ष प्राप्त करने की यात्रा पर होते हैं । आर्कियोलॉजिस्ट ने काफी सोच विचार करके ये भी पाया कि जहां जहां भी ऐसी मूर्ति पहले पाई गई थी वो सभी जगह कहीं ना कहीं बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई है और अब वाडनगर में भी ऐसी मूर्ति मिलना उन्हें यही सोचने पर मजबूर कर रहा था कि क्या किसी जमाने में यहां भी बौद्ध धर्म हुआ करता था और अगर हां तो कितने वक्त से?
आर्कियोलॉजिस्ट ने सोचा कि अब ये जानने के लिए तो वहां जाकर खुदाई करनी ही पड़ेगी। कोई नई इन्फॉर्मेशन मिलने की पॉसिबिलिटी देखते हुए अब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने भी आर्कियोलॉजिस्ट की बात मानते हुए वहां खुदाई करवाने के ऑर्डर दे दिए और बिना देर किए वाडनगर में अलग अलग हिस्सों पर जमीन खोदनी शुरू कर दी गई।
कई दिन बीते, कुछ मीटर तक खुदाई कर ली भी गई, पर अभी तक कुछ ऐसा खास मिल नहीं पाया था। पर हिम्मत हारे बिना उन्होंने अपना काम जारी रखा। जमीन को थोड़ा और खोदा गया, पर इस बार जमीन के नीचे आर्कियोलॉजिस्ट को कुछ दीवारें मिलना शुरू हुई।
उन दीवारों के पास उन्हें एक प्लेट जैसा टुकड़ा मिला। उस टुकड़े पर भी बौद्ध धर्म से जुड़ी एक तस्वीर बनी थी और बताया जाता है कि उस तस्वीर में कुछ ऐसे ही घटनाओं की झलक थी, जो बुद्ध के निर्वाण से पहले वैशाली में हुआ था।
अब इस प्लेट के मिलने से तो आर्कियोलॉजिस्ट को यकीन होने लगा था कि भाई सच में इस जगह पर किसी जमाने में बौद्ध धर्म हुआ करता था। ये मान लिया गया कि वो दीवारें एक बुद्ध मोनेस्ट्री की हो सकती हैं और इस बात के भी सबूत मिल चुके थे कि वाडनगर में किसी जमाने में बौद्ध धर्म हुआ करता था।
रिसर्चर्स इतनी बात तो जान चुके थे कि वाडनगर में उन्हें हिस्ट्री का कोई ठोस सबूत तो जरूर मिलेगा। कई बार वहां पर खुदाई की गई पर हर बार कुछ नई जानकारी मिलती तो थी, पर आर्कियोलॉजिस्ट को अब भी ऐसा लग रहा था कि वाडनगर में ऐसी हिस्ट्री अब भी छुपी है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता।
इसलिए साल 2016 में चार बड़े इंस्टीट्यूशंस जिनमें आईआईटी खड़गपुर, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और डेक्कन कॉलेज शामिल थे। उन्होंने मिलकर बड़े लेवल पर एक रिसर्च शुरू की और चल दिए इतिहास के एक नए अध्याय को खोजने ।
उनकी रिसर्च साल 2023 तक चली, जिसके लिए उन्होंने जमीन को 30 मीटर तक नीचे खोदा। खुदाई के दौरान उन्हें कई ऐसे बातों का पता चला जिन्हें जानकर इतिहास को थोड़ा और अच्छे से समझा जा सकता था और रिसर्चर्स ने जो बातें बताई थी उन्हें देखते हुए वाडनगर को आज इंडिया की ओल्ड लिविंग फोर्टीफाइड सिटी माना जाता है।
दरअसल लिविंग सिटी उसे कहा जाता है जहां कभी लोगों ने रहना बंद न किया हो और वाडनगर में आर्कियोलॉजिस्ट को जो सबूत मिले हैं, उनसे पता चलता है कि 800 बीसी के बाद से यानी 2800 साल पहले से यहां अलग अलग राजाओं के राज में कोई न कोई तो रह ही रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में आईआईटी खड़गपुर के जियोलॉजी और जियोफिजिक्स के प्रोफेसर अनिंद्य सरकार बताते हैं कि आमतौर पर लोग वाराणसी को इंडिया की ओल्ड सिटी बताते हैं पर ये नहीं बताया जा सकता कि लोग वहां पर कब से रह रहे हैं।
यही नहीं वाराणसी के काफी सारी जगहों में इंसानों का व्यवसाय भी स्थिर नहीं था। जहां तक रिसर्च में पता लगता है कि वाडनगर में लोग कंटीन्यू रह रहे हैं। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि हिस्ट्री में वाडनगर के अलावा 500 बीसी से पहले की अब तक की कोई एडवांस्ड सिटी लाइफ सेटलमेंट देखने को नहीं मिली।
रिसर्चर्स की इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए वाडनगर को इंडिया की ओल्ड लिविंग सिटी बताया जा रहा है। यही नहीं, वाडनगर में भी की गई रिसर्च ने आर्कियोलॉजिस्ट की सदियों पुरानी माने जाने वाली डार्क एज की थ्योरी को भी गलत ठहरा दिया है।
यह भी पढ़ें :
भगवान हनुमान की 7 अनसुनी कहानियाँ जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
क्या आपको पता है राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में क्यों नहीं गए शंकराचार्य
जाने आखिर ईरान ने क्यों किया पाकिस्तान पर हमला
किला बन गई अयोध्या नगरी, राम मंदिर की सुरक्षा के लिए आया इजरायाली ड्रोन
पर क्या है ये डार्क एज की थ्योरी?
डार्क एज जिसे अंधकार युग के नाम से जाना जाता है। ये उस टाइम पीरियड को कहते हैं, जिसके बारे में आर्कियोलॉजिस्ट को, हिस्टोरियन को या फिर किसी को भी ज्यादा इंफॉर्मेशन नहीं है। इंडियन आर्कियोलॉजिस्ट के पास अब तक इंडिया में 1500 बीसी और 500 बीसी के बीच के पीरियड की कोई जानकारी नहीं थी।
इसलिए वो इस टाइम पीरियड को डार्क एज मानते थे। ये वो पीरियड था जब इंडस वैली सिविलाइजेशन खत्म होती जा रही थी। हिस्ट्री में अब तक इस पीरियड के बाद सीधा 500 बीसी के आस पास के यानी आयरन एज की शुरुआत के ही सबूत मिले थे पर अब ये कहा जा रहा है कि वाडनगर में की गई रिसर्च से इस बीच के पीरियड के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला है।
सभी रिसर्च को मिलाकर क्या कुछ मिला अब तक खुदाई में?
देखिए वाडनगर के इलाके की खुदाई में आर्कियोलॉजिस्ट को वहां पर चार अलग अलग धर्मों के होने की पॉसिबिलिटी दिखी है। उनके अकॉर्डिंग यहां पर हिंदू, जैन, बौद्ध और इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रहा करते थे।
इसके साथ ही खुदाई के दौरान वहां सात कल्चरल लेयर्स देखने को मिली हैं। यानी सात अलग अलग रूल्स के टाइम से लोग वहां पर रहे हैं, जिनमें इंडो ग्रीक, इंडो एशियन और गुप्ता किंगडम जैसे रूल्स शामिल हैं। खुदाई के दौरान आर्कियोलॉजिस्ट को एक कंकाल भी मिला, जिसकी कार्बन डेटिंग करने पर पता चला कि वो कंकाल 3400 से भी ज्यादा साल पुराना है।
कार्बन डेटिंग जिसे c -14 कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है। ये एक तरह का साइंटिफिक मेथड है जिससे 60,000 साल तक पुराने किसी भी ऑर्गेनिक मटेरियल की उम्र पता की जा सकती है। दरअसल, जितने भी लिविंग ऑर्गेनिज्म हैं जैसे पेड़, पौंधे , इंसान, जानवर , ये अपनी बॉडी के टिशूज में कार्बन प्रोटीन अब्जॉर्ब करते हैं।
जब ये मर जाते हैं तो बॉडी में जितना भी कार्बन मौजूद होता है वो अपने आप को एटम में बदलने लगता है। तो किसी भी ऑर्गेनिज्म की उम्र निकालने के लिए साइंटिस्ट बॉडी में रिटेनिंग कार्बन काउंट करते हैं, जिससे पता चलता है कि भई ये बॉडी कितने टाइम पहले डेड हुई है।
यही नहीं खुदाई में सोने और चांदी के बहुत पुरानी चूड़ियां और जेवरों के साथ साथ बर्तन, पोटरी जैसी चीजें भी मिली हैं जो बहुत सालों पुरानी है। इनके अलावा लोहे और तांबे का भी काफी सामान मिलने की बात बताई जा रही है।
अब देखिए इंडस वैली सिविलाइजेशन के लोग भी अपने टाइम में तांबे का इस्तेमाल बर्तन, गहने और कलाकृतियां बनाने के लिए किया करते थे। तो कहीं ना कहीं वाडनगर को भी हड़प्पा सिविलाइजेशन यानी इंडस वैली सिविलाइजेशन से जोड़कर देखा जा रहा है।
और क्योंकि वाडनगर के बसने के बाद इंडस वैली सिविलाइजेशन के अंत के दौरान की बताई जा रही है, शायद इसलिए वाडनगर में इंडस वैली सिविलाइजेशन का भी प्रभाव देखा जा सकता है। बताया ये जा रहा है कि वाडनगर में 28 अलग अलग तरह के सिक्के भी मिले हैं जिन पर अलग अलग पैटर्न है।
जैसे किसी सिक्के के ऊपर गरुड़ है तो किसी के ऊपर त्रिशूल, फूल, पहाड़ी हिरण और काफी अलग अलग जानवर बने हुए हैं। इन सब चीजों को देखकर कहा जा सकता है कि शायद वाडनगर एक काफी धनी शहर रहा होगा और आर्थिक रूप से काफी एक्टिव रहा होगा और शायद व्यापार के लिए इसका रिलेशन काफी राज्यों से भी बना होगा।
जो सिक्के यहाँ मिले हैं उनमें से काफी सिक्के, क्षत्रापा , पोस्ट क्षत्रापा , सल्तनत मुगल और गायकवाड़ राज के पास गए हैं। अलग अलग राज के समय के यह सिक्के ये भी बताते हैं कि वहां काफी सारे लोग राज करके गए हैं।
चीन के फेमस ट्रैवलर ह्यून सांग ने भी लगभग 1400 साल पहले अपनी एक बुक सी-यू-की में वाडनगर के बारे में लिखा था। जी हां, उनकी ये बुक 1844 में एक ब्रिटिश स्कॉलर सैम्युअल बीएल ने इंग्लिश में ट्रांसलेट की जिसे उन्होंने द बुद्धिस्ट रिकॉर्ड ऑफ़ वेस्टर्न वर्ल्ड के नाम से पब्लिश किया।
ह्यून सांग ने वाडनगर के बारे में बताते हुए ओ-नान -तो -पोलो नाम का इस्तेमाल किया है, जिसे ट्रांसलेट करने पर इसका नाम आनंदपुरा बताया गया है। आपको बता दें कि आनंदपुरा भी वाडनगर का ही नाम है। कहा जाता है कि महाभारत काल में इस जगह को आनंदपुर नाम से ही पुकारा जाता था क्योंकि उस वक्त यहां पर अनार्ता राजवंश का अधिपत्य था।
सांग ने अपनी बुक में लिखा कि जिस वक्त वो इंडिया में आए थे तब वो आनंदपुरा में रुके थे। ह्यून सांग एक बुद्धिस्ट भी थे और उन्होंने ये भी बताया है कि आनंदपुर में भी उस वक्त 10 के करीब संग्राम यानी की बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री थी और उनमें करीब हजार लोग रहा करते थे।
इसके अलावा उनकी बुक में ये भी पता चलता है कि आनंदपुरा में उन्होंने कई सारे मंदिर भी देखे थे जहां पर अलग अलग तरह के लोग आया करते थे। दोस्तों ह्यून सांग ने वाडनगर को एक धनी जगह बताया है जो एक बड़े राज्य मलावा का पार्ट था और जहां काफी सारे राजाओं का राज रहा है।
अपने अंदर इतना गहरा इतिहास छुपाए वाडनगर यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट की टेंटेटिव लिस्ट में शामिल हो गया है ।
दरअसल, कोई ऐसी जगह जिसकी आउटस्टैंडिंग यूनिवर्सल वैल्यू हो, उसके कल्चरल ट्रेजर को प्रिजर्व करने और प्रोटेक्ट करने के लिए उसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट डिक्लेयर किया जाता है और इस लिस्ट में इसी जगह का नाम नॉमिनेट करने के लिए उस जगह को एक साल के लिए पहले एक टेंटेटिव लिस्ट में रखा जाता है।
फिर उस जगह का नॉमिनेशन वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर यानी कि डब्ल्यूएचओ से भेजा जाता है। जिसके बाद ही वो जगह वर्ल्ड हेरिटेज साइट मानी जा सकती है। इंडिया में अब तक 40 जगहें वर्ल्ड हेरिटेज साइट मानी जा चुकी है और 52 साइट्स ऐसी हैं जिनके नाम टेंटेटिव लिस्ट में शामिल हैं। इस लिस्ट में दो नाम गुजरात से भी हैं, जिसमें एक वाडनगर है।
निष्कर्ष
आर्कियोलॉजिस्ट द्वारा की गई रीसेंट स्टडी से इंडिया की ओल्ड लिविंग सिटी वाडनगर के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला है और जितनी इन्फॉर्मेशन मिली है, उसे एनालाइज करके और भी बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। आपको ये आर्टिकल कैसा लगा , कमेंट सेक्शन में हमें जरूर बताएं।धन्यवाद।