दोस्तों वैसे तो नरेंद्र मोदी जी अपने किसी भी वादे को पूरा करने से पीछे नहीं हट रहे हैं चाहे फिर वो राम मंदिर वाला मुद्दा हो या फिर कश्मीर से धारा 370 हटाने का मामला। देश को डिजिटल बनाने का सपना हो या फिर इंडिया को आर्थिक महाशक्ति बनाने का दृढ़ निश्चय, सभी को एक एक करके पूरा करने में लगे हुए हैं। लेकिन 2014 में मोदी जी का एक और वादा था जो जनता के दिमाग में बना हुआ है।
जी हां और वो है सभी के अकाउंट में भैया 15 -15 लाख डालने का वादा। जब मोदी जी सभी वादे पूरे करने में लगे हुए हैं तो क्यों नहीं बहुत सारे पैसे छपवाकर सभी के अकाउंट में 15-15 लाख रूपये डाल कर अपना वादा पूरा कर देते हैं। आखिर करना ही क्या है? नोटों को प्रिंट ही तो करवाना है ।
तो ऐसी क्या वजह है जिसकी वजह से नरेंद्र मोदी अब तक अपने इस वादे से दूर बने हुए हैं। आज इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि आखिर क्यों पावर होने के बाद भी सरकार RBI से जितने चाहे उतने पैसे नहीं छपवा सकती। तो चलिए इसे एक एग्जाम्पल के जरिए गहराई से समझते हैं।
क्या हो अगर RBI बहुत सारा पैसा छापकर लोगों में बाँट दे तो
मान लीजिए कि शहर से दूर एक कॉलोनी है जिसमें 100 लोग अपनी अपनी फैमिली के साथ रहते हैं। इस कॉलोनी के अंदर एक ही बड़ी दुकान है, जहां किसी भी तरह का कोई भी सामान मिल जाता है और जो भी छोटी मोटी दुकानें हैं वो यहीं से सारा सामान खरीदती हैं और फिर इन दुकानों से ये सारा सामान लोगों तक पहुंचता है।
सारी दुकानों के दुकानदार भी कॉलोनी में ही रहते हैं। एक दिन आप इस बड़ी दुकान पर जाते हैं और वहां से ₹90 का कुछ सामान खरीदते हैं, जिसके लिए ₹100 का नोट दुकानदार को देते हैं तो दुकानदार कहता है कि मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं है तो आप कहते हो कि कोई बात नहीं मैं बाद में ले लूंगा।
तब दुकानदार एक कागज पर ₹5 बाकी लिखता है और अपने हस्ताक्षर करके आपको दे देता है और कहता है कि बाद में कुछ भी सामान लेने आओ तो इसे दिखा देना, मैं आपको सामान दे दूंगा। तो आप जब अगली बार वहां सामान लेने जाते हैं और कागज दिखाते हैं तो इस कागज के बदले दुकानदार आपको ₹5 का सामान दे देता है।
अब ये समस्या किसी एक व्यक्ति की तो थी नहीं, कई लोगों की थी। कई लोगों के साथ दुकानदार ऐसा ही करता और अब छुट्टे की कमी के कारण यह लगभग रोज का सिलसिला हो गया था। हर रोज कागज पर लिख लिखकर, परेशान होकर दुकानदार इस समस्या का एक समाधान निकालता है और ₹5 के कूपन छपवा देता है।
अब जब उसके पास खुले पैसे नहीं होते तो वो ₹5 का वो कूपन दे दिया करता था और बाद में इस कूपन को लेकर सामान दे दिया करता था। यहां तक तो फिर भी ठीक ही था लेकिन इस कॉलोनी में रहने वाले दुकानदार भी इस बड़ी दुकान से सामान खरीदते थे।
तो जब इनके साथ भी यही समस्या हुई तो इन दुकानदारों को भी बड़ी दुकान वाले ने कूपन दे दिया और जब ये दुकानदार वापस इस बड़ी दुकान पर जाते थे तो वो इस कूपन के बदले में उन्हें सामान दे दिया करता था।
अब जब इससे लोगों को ये फायदा हुआ कि लोग छोटी दुकानों पर जाते तब भी उन्हें इस कूपन के बदले में सामान मिल जाता था। क्योंकि इन छोटे दुकानदारों के पास जितने भी कूपन आते थे वो ये कूपन बड़ी दुकान वाले को ही दे देते थे और बड़ी दुकान वाला सेठ इनको सामान दे देता था।
तो इस पूरे प्रॉसेस से होता क्या है कि पैसों की तरह ही ये कूपन चलने लगते हैं। लोग कूपन से ही अब इस कॉलोनी में कुछ भी खरीद सकते थे।
अब होता क्या है कि इस दुकान में एक लड़का काम करता था जो कि कॉलेज में पढ़ता था। इसके बहुत सारे दोस्त थे, तो ये लड़का क्या करता है? जब मालिक दुकान में नहीं होता तो कूपन छापने वाली मशीन का यूज करके बहुत सारे कूपन छाप लेता है और ये कूपन अपने दोस्तों में फ्री में ही बांट देता है।
इसके दोस्त पार्टी करने के लिए डेली नमकीन, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक और भी कई सामान इन्हीं कूपन से खरीदने लगे। अब ये उसकी एक दिन की बात नहीं थी, ये उसका रूटीन बन गया। दुकानदार जब नहीं होता तो वो कूपन छापता और इन कूपन को दोस्तों और रिश्तेदारों में अपनी पैठ बनाने के लिए फ्री में ही उनको दे देता था। इसके दोस्त डेली पार्टी करने लगे।
अब इसके दोस्त जिस दुकान से सामान खरीदते थे तो उसके पास बहुत सारे कूपन हो गए जिस वजह से उसने कूपन लेने ही बंद कर दिए। तो इन लोगों ने क्या किया उस दुकानदार को एक ऑफर दिया कि हम जितने का भी सामान खरीदेंगे दोगुने कूपन आपको देंगे और अब दुकानदार को भी दोगुना पैसा मिल रहा है तो उसे भी कोई दिक्कत नहीं थी।
अब धीरे धीरे करके दुकानदार के पास बहुत सारे कूपन इकट्ठा हो जाते हैं। इतने का सामान तो वो बड़ी दुकान से एक महीने में भी नहीं खरीदता था। अब ये दुकानदार फिर से कूपन लेना बंद कर देता है पर उस लड़के के दोस्तों के पास तो मुफ्त के अभी भी बहुत सारे कूपन थे।
तो उन्होंने कहा कि हम आपको तीन गुना ज्यादा कूपन देंगे। ऐसा करते करते ये लोग दुकानदार को तीन गुना और पांच गुना ज्यादा कूपन देने लगते हैं। दुकानदार को भी ठीक लगा तो वो लेने लगा और फिर इस तरह इन्हें जो सामान ₹10 में मिल जाया करता था, उस सामान के लिए ये लोग ₹50 देने लगे।
अब जिन लोगों को ये सामान ₹10 में देता था उनसे भी उस सामान के उसने ₹50 मांगने शुरू कर दिए और इस तरह से ₹10 का सामान मार्केट में ₹50 का बिकने लगा। समस्या यहीं खत्म नहीं हुई जब ये दुकानदार बड़ी दुकान से सामान लेने जाता है और कूपन के बदले ढेर सारा सामान खरीद लेता है और ऐसा कई बार उसने किया।
दुकानदार को वो सामान वहां पर तो उसी रेट में मिल जाता था लेकिन यहां पर पांच गुना ज्यादा में बेचता था। जिससे होता क्या है कि धीरे धीरे बड़ी दुकान का सारा सामान बिक जाता है और इस सामान के बदले में उसके पास बहुत ही कम पैसा आता है।
बड़े दुकानदार को पता ही नहीं चल रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा था क्योंकि वो अपनी तरफ से कुछ गलत तो कर नहीं रहा था। अब धीरे धीरे ये बड़ी वाली दुकान घाटे में चलने लगी और फिर बाद में इस घाटे की वजह से मजबूरी में इस बड़ी दुकान में ताला डालना पड़ा।
अब ये दुकान बंद होने से लोगों के पास और दूसरे छोटे दुकानदारों के पास जितने भी कूपन थे वो सभी कागज के टुकड़े बन कर रह जाते हैं । मतलब जिन जिन के पास कूपन थे सभी को नुकसान हो जाता है।
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सरकार अधिक पैसा क्यों नहीं छाप सकती?
अब इसी तरह आरबीआई (RBI) भी बड़ी दुकान की तरह ही है। अगर मोदी जी आरबीआई (RBI) से अपने मन से नोट छापकर मुफ्त में बांटने को बोल देंगे तो दुकानदार के सामान की तरह ही पूरे देश में हर चीज की कीमत बढ़ जाएगी।
जो चीज आज हमें ₹10 की मिलती है ना, उसकी कीमत कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगी और कुछ ही दिनों में बड़ी दुकान की तरह ही आरबीआई (RBI) भी बंद हो जाएगी। आरबीआई (RBI) के बंद होने की वजह से कुछ ही दिनों के बाद देश की अर्थव्यवस्था डूब जाएगी। इसको और अच्छे से समझने के लिए चलिए थोड़ा पीछे में चलते हैं।
जब देश की आजादी के बाद 1950 में इंडियन गवर्नमेंट ने देश का डेवलपमेंट करने के लिए लोन लिया, लेकिन बाद में जब सरकार के पास ये लोन चुकाने के लिए पैसा नहीं था तो बहुत ज्यादा करंसी को छापकर लोन चुकाया गया। जिस वजह से रुपये की वैल्यू और कम हो गई और देश में महंगाई दर बढ़ गई थी।
अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि भाई और अधिक करेंसी छापने से रुपए की वैल्यू कैसे कम हो गई तो फिर चलिए एक और एग्जांपल से इसे समझाने की आपको कोशिश करते हैं।
ये मानकर चलते हैं कि सरकार ने देश के डेवलपमेंट के लिए ₹100 का लोन लिया और इस पूरे पैसे को कंट्री के डेवलपमेंट में ही लगा दिया। और फिर बाद में जब इस लोन को चुकाने का समय आया तो सरकार के पास मात्र ₹25 थे।
अब सरकार के पास ये पावर होती है कि वो रुपए की वैल्यू को कंट्रोल कर सकती है। इसके लिए सरकार पैसे को छापती है । सरकार इस लेवल तक करंसी को प्रिंट करती है कि ₹1 की जो वैल्यू थी वो ₹10 के वैल्यू के बराबर हो जाती है। यानी सरकार के पास जो ₹25 थे अब वो 10 गुना ज्यादा मतलब ₹250 हो जाते हैं ।
अब सरकार ने ₹250 में से ₹100 तो लोन चुकता कर दिया और सरकार के पास ₹150 बच जाते हैं । लेकिन इसका परिणाम साहब ये होता है कि करंसी की ज्यादा सप्लाई मार्केट में होने से करंसी की वैल्यू कम हो जाती है। जिससे अब तक जिस चीज को हम ₹1 में खरीद सकते थे, अब उसे खरीदने के लिए ₹10 देने पड़ते हैं।
क्या है RBI के नोट छापने के नियम
दरअसल आरबीआई (RBI) जब भी नोट छापती है तो पहले ये जरूर देखती है कि नोटों के मूल्य के बराबर उसके पास कुछ जमा है या नहीं। सामान्यतः आरबीआई (RBI) जितने भी नोट छापती है उसकी कीमत के बराबर मूल्य का सोना अपने पास रखती है।
जब तक आरबीआई (RBI) के पास बराबर मूल्य का कुछ जमा नहीं होता तब तक वो नोट नहीं छापती। लेकिन कभी कभी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए थोड़े से नोट ज्यादा भी छाप दिए जाते हैं, जिससे थोड़ी बहुत महंगाई मार्केट में बढ़ जाती है।
लेकिन ये सब उस लेवल तक ही किया जाता है जिस लेवल तक किसी को पता न चले और आसानी से कंट्रोल किया जा सके।
भारतीय रिजर्व बैंक वर्ष 1956 से करंसी नोट छापने के लिए मिनिमम रिजर्व सिस्टम का पालन कर रहा है। इसके अंतर्गत रिजर्व बैंक को करंसी नोट प्रिंट करने के लिए कम से कम 200 करोड़ रुपए का रिजर्व हमेशा रखना पड़ता है, जिसमें 115 करोड़ रूपये का गोल्ड और ₹85 करोड़ फॉरेन करेंसी के रूप में रखने होते हैं। इसके बाद ही रिजर्व बैंक करंसी नोट प्रिंट कर सकती है। यह रिजर्व मिनिमम है।
रिजर्व बैंक इसे समय समय पर बढ़ाता रहता है। इसलिए बिना रिजर्व के अतिरिक्त करंसी नहीं छापी जा सकती है। अगर ऐसा संभव होता तो भारतवर्ष की गरीबी बहुत पहले ही दूर हो गई होती।
पुराने समय में जब सोने और चांदी के सिक्के चलते थे, जिनकी कीमत उन सिक्कों की कीमत की असली कीमत होती थी, तब लोगों को इस तरह की गलतफहमी नहीं होती थी, क्योंकि करंसी प्रचलन में लाने के लिए सोना या चांदी चाहिए होता था।
लेकिन जब से भैया ये कागज या प्लास्टिक की करंसी शुरू हुई है तो ऐसा लगता है कि हम ज्यादा से ज्यादा करंसी छापकर लोगों को अमीर बना सकते हैं। पुराने समय में जब सोने और चांदी की करंसी चलती थी तो अक्सर लोग उसे अपने पास एकत्र करके रखते थे और इसलिए मुद्रा प्रचलन का काम बहुत मुश्किल हो गया था।
इसके अलावा कई बार इस तरह की महँगी करंसी खो भी जाती थी। इसलिए उसके स्थान पर कागज की करंसी चलाने का फैसला लिया गया, जिससे इसके खोने या नष्ट होने से इसके पीछे सोने के रूप में रखा गया रिजर्व सुरक्षित रहेगा।
समय समय पर पेपर करंसी के नोटों को सुरक्षा की दृष्टि से वापस भी लिया जा सकता है और बदला भी जा सकता है, जैसा कि नोटबंदी के समय किया गया था। बिना रिजर्व के और बिना किसी नीति के अनावश्यक रूप से अतिरिक्त करंसी नोट प्रिंट करने के बहुत ही भयंकर परिणाम सामने आ सकते हैं।
इसलिए प्रत्येक देश को जहां तक संभव हो सके इससे बचना चाहिए। और यही कारण है दोस्तों कि मोदी गवर्नमेंट भी अब तक इससे बचती आ रही है और लोगों के अकाउंट में 15 -15 लाख नहीं डाल पा रही है।
निष्कर्ष
खैर आशा करते हैं कि आपको समझ में आ गया होगा कि भई आखिर क्यों गवर्नमेंट के पास पावर होने के बाद भी वह जितने चाहे उतने पैसे नहीं छापती। अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो कृपया करके इसे शेयर जरूर करियेगा, और अगर कोई डाउट हो तो हमे कमेंट जरूर करियेगा। धन्यवाद।