18 अगस्त 1945 को प्लेन क्रैश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज तक एक रहस्य बनी हुई है। लेकिन हम यहां पर उनकी इस मिस्ट्री को नहीं डिस्कस करने वाले हैं ,बल्कि उनसे जुड़ी उससे भी बड़ी एक मिस्ट्री है, जिसे काफी लोग नजरअंदाज कर चुके हैं।
बताया जाता है कि मरने से पहले बोस के पास एक सोने से भरा बैग हुआ करता था जिसमें तकरीबन 55 से 60 किलो तक सोना था। लेकिन उनकी मौत के साथ ही आईएनए (INA) के पास जमा खजाने का वो 60 किलो का सोना कहां गायब हो गया, यह सवाल उनकी मौत से भी बड़ा रहस्य है।
क्योंकि अगर ये सोना आज होता तो इसकी कीमत कहीं न कहीं 250 करोड़ के बराबर होती। लेकिन फिर इसके बाद सवालों का एक घेरा और खड़ा हो जाता है जो ये सोचने पर मजबूर करता है कि नेताजी के पास आखिर इतना सोना क्या कर रहा था और उनके पास उस समय ये सोना कहां से आया था। तो बस इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए हमें कई ऐसे जवाब मिले जिन्हें आपके लिए जानना भी काफी इंटरेस्टिंग होगा।
क्या है नेताजी बोस के सोने से भरे बैग का राज़?
तो आइए शुरुवात करते हैं अगस्त 1945 के दूसरे हफ्ते से। इस समय तक मध्य एशिया में दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था। अमेरिका ने विश्व के सबसे बड़े अटैक को अंजाम दिया, जिसमें नागासाकी और हिरोशिमा को परमाणु बम गिरा कर पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। जिसकी वजह से जापान की हालत बदतर हो गई थी।
15 अगस्त 1945 ये वो दिन था जब जापान के सम्राट ने द्वितीय विश्व युधा में आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर डाली। इस समय नेताजी सिंगापुर में ही थे और वो ये बात जान चुके थे कि अब जल्द ही ब्रिटिशर्स यहां ब्रिटिश आर्मी के साथ अपना कब्जा जमा लेंगे।
सुभाष चंद्र बोस के लिए यह बुरी खबर थी क्योंकि जापान उनकी आजाद हिंद फौज का मेन सोर्स या कह लीजिए अड्डा हुआ करता था। जापान के आत्मसमर्पण करने की वजह से नेताजी का एक सपना तो टूट रहा था लेकिन दूसरा सपना जो कि भारत को आजाद कराने का था वो अब भी बरकरार था।
ऐसे में उन्होंने सिंगापुर छोड़ने का फैसला किया और इससे पहले उन्होंने आईएनए के फंड को बैंकॉक भिजवा दिया। इतिहासकार जॉयस चैपमैन की बुक The INA And Japan के मुताबिक 16 अगस्त को बोस ने वियतनाम के शहर साइगॉन जाने का फैसला किया।
इसके लिए वो पहले बैंकॉक में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के हेडक्वार्टर गए और वहां जाकर आईएनए के मेंबर्स से मिले। ऐसा बताया जाता है कि सिंगापुर से बैंकॉक के इसी हेडक्वार्टर में नेताजी का सारा खजाना पहुंचाया गया था और फिर यहीं पर खजाने को चार हिस्सों में बांटकर बक्सों में भर दिया गया।
इन बक्सों में सोने के जेवर थे और इन्हीं बक्सों में से एक में एक सोने का सिगरेट केस था, जिसे हिटलर ने नेताजी को कभी गिफ्ट में दिया था। कहानी आगे बढ़ती है और 17 अगस्त की सुबह करीब 06:00 बजे बैंकॉक एयरपोर्ट से नेताजी और उनकी टीम कुछ जापानी ऑफिसर्स के साथ दो प्लेन में साइगॉन के लिए रवाना होते हैं।
नेताजी के साथ आईएनए फंड वाले दो छोटे और दो बड़े सूटकेस थे। साइगॉन पहुंचने के तुरंत बाद उन्होंने जापानी सेना के प्रमुख फील्ड मार्शल हिसाइची टैरोची से मुलाकात की थी। नेताजी यहां से मंचूरिया जाने चाहते थे। उन्होंने साइगॉन से टोक्यो जाने वाली एक बॉम्बर प्लेन मित्सुबिशी के आई 21 में बोस के लिए एक सीट की व्यवस्था कर दी थी।
प्लेन में 11 लोग पहले से ही सवार थे, लेकिन बोस अकेले नहीं जाना चाहते थे। वो कम से कम अपने साथ दो और लोगों को भी ले जाना चाहते थे। उन्होंने खजाने से भरा बक्सा और आईएनए के उनके करीबी कर्नल हबीबुर रहमान को अपने साथ जाने के लिए कहा।
प्लेन मंचूरिया होकर जाने वाला था। बोस जी का सोवियत यूनियन में शरण लेकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का अपना एक प्लान था। 17 अगस्त की शाम को 5 बजकर 20 मिनट पर प्लेन ने साइगॉन से उड़ान भरी।
उड़ान भरते समय ही प्लेन काफी आवाज कर रहा था, जिसके चलते रात में ये प्लेन वियतनाम रुका। जहां पायलट ने वजन कम करने के लिए कई मशीनगन, गोला बारूद और एंटी एयरक्राफ्ट गन को हटा दिया।
18 अगस्त की सुबह बॉम्बर प्लेन ने फिर उड़ान भरी और फॉरमोसा पहुंचा जिसे अब हम ताइवान के नाम से जानते हैं। यहां प्लेन को रिफ्यूलिंग के लिए रोका गया था। इस प्लेन में कैपेसिटी से ज्यादा गैसोलीन भरा हुआ था।
फॉरमोसा में प्लेन ने जैसे ही टेकऑफ किया, 20 से 30 मीटर की ऊंचाई पर एक विस्फोट की आवाज आई और उसके बाद तीन चार जोरदार धमाके हुए। विमान के बायीं ओर का प्रोपेलर बाहर जा गिरा।
कंक्रीट रनवे से आगे जाकर क्रैश होने की वजह से विमान दो हिस्सों में टूट गया और इसी प्लेन में बैठे नेताजी भरी हुई गैसोलीन से पूरी तरह लथपथ बाहर निकले। उनके कपड़ों में पूरी तरह आग लग चुकी थी। उनके बाद हबीबुर भी उनके पीछे बाहर निकले।
बाहर निकलते ही हबीबुर ने बड़ी मुश्किल से नेताजी का स्वेटर और कपड़े उतारे और उन्हें जमीन पर लेटा दिया। नेताजी का शरीर और चेहरा आग से पूरी तरह झुलस गया था। उन्हें जल्द ही हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उनकी हालत बेहद ही क्रिटिकल थी, क्योंकि शरीर के ज्यादातर हिस्से आग की लपट में आने की वजह से जल चुके थे।
हालांकि वो अभी भी होश में थे लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार होता हुआ नहीं दिख रहा था और वही हुआ जिसका डर था। नेताजी की मृत्यु हो जाती है।
हालांकि कई रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि उस प्लेन क्रैश में नेताजी बच गए थे, इसलिए उनकी मौत अभी एक रहस्य है। ऐसे में एक सवाल जरूर खड़ा हो गया। वो ये कि इस प्लेन क्रैश के बाद नेताजी के खजाने से भरे बक्से का क्या हुआ। लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि नेताजी के जिस खजाने की मिस्ट्री सुनकर आप हैरान हो रहे हैं, उसके सोर्स क्या थे।
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आखिर नेताजी के पास इतना सोना चांदी और खजाना कहां से आता था और इसका वो क्या करते थे?
तो इसके बारे में मधुश्री मुखर्जी ने अपनी बुक चर्चिल सीक्रेट वॉर में लिखा है कि बोस नहीं चाहते थे कि आईएनए जापान पर डिपेंड रहे। इसलिए वो अक्सर डोनेशन से फंड जुटाते थे। कई बार उन्होंने फंड कलेक्ट करने के लिए कैंपेन भी चलाया। लोग उनके स्पीच से इन्फ्लुएंस होकर उन्हें पैसे और सोना चांदी देते थे।
उनके भाषण को सुनकर औरतें अपने जेवर उतारकर उनके सामने रख देती थीं। एक बार की घटना है जब हीराबेन बेतानी नाम की एक महिला ने नेताजी से प्रभावित होकर अपने 13 सोने के हार दान में दे डाले थे, जिनकी तबकी कीमत डेढ़ लाख रुपए थी।
हबीब साहब नाम के एक रईस ने आईएनए के फंड में 10000000 की प्रॉपर्टी जमा कर दी थी। वहीं रंगून के एक बिजनेसमैन वीके नादर ने आजाद हिंद बैंक में ₹42 करोड़ और 28 सोने के सिक्के डोनेट किए थे। 1945 में नेताजी के बर्थडे के मौके पर फंड कलेक्ट करने के लिए कैंपेन चलाया गया।
इसमें नेताजी को लोगों ने सोने के बराबर तौला। ये कैंपेन अलग अलग शहरों में करीब एक वीक तक चलता रहा, जिसमें ₹2 करोड़ और लगभग 80 किलो सोना इकट्ठा हुआ। इस बात से आप समझ सकते हैं कि उस समय नेताजी कितने पॉपुलर थे और उनकी इस पॉपुलैरिटी की वजह से ही आईएनए का खजाना हमेशा भरा रहता था।
आखिर इस षड़यंत्र में नेताजी का सोने से भरा बैग कहां गया?
दरअसल, इस प्लेन क्रैश में जितना सोना बचाया जा सकता था, उसे बचाकर जापान के एक मेजर के.साकाई ने एक पेट्रोलियम कैन में जमा किया और उसे सील कर आर्मी हेडक्वार्टर पहुंचा दिया, जहां से उन्हें नेताजी की अस्थियों के साथ टोक्यो भेज दिया गया।
बाद में इस सोने से भरे खजाने को इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के टोक्यो के प्रेसिडेंट एम राममूर्ति को सौंप दिया जाता है। ये खजाना अगले छह साल तक टोक्यो में ही रहा।
1952 में फंड को भारत लाकर नेशनल म्यूजियम में जमा करवा दिया गया। लेकिन इस बैग का वजन 60 से 70 किलो हुआ करता था। अब उसका वजन सिर्फ 11 किलो का ही था।
बाद में 1971 में जस्टिस जीडी खोसला जांच कमीशन ने जब इस बात की जांच पड़ताल की तो उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया की खजाने के साथ लूट खसोट हुई है। माना जाता है कि आइएनए के खजाने में से लगभग 60 किलो सोना गायब हुआ था। आज के समय में उस खजाने की कीमत 250 करोड़ रुपये थी।
ऐसे में आज तक एक बड़ा सवाल बना हुआ है कि बाकी का खजाना कहां गया?
तो अब फिर से इस कहानी में ट्विस्ट आता है और इस खजाने के लूट आरोप लगते हैं इंडियन इंडीपेंडेंस लीग के टोकियो के प्रेसिडेंट एम राममूर्ति पर।
टोक्यो में जापानी और भारतीय लोगों के बीच तब यह एक बड़ा मुद्दा बन चुका था और लगातार ये सवाल किए जा रहे थे कि वॉर से बर्बाद हुए जापान में राममूर्ति कैसे महंगी महंगी गाडिय़ां लेकर घूम रहे हैं। आखिर उनके पास इतना पैसा कहां से आया? हालांकि सरकार ने इस मामले पर तब कोई खास ध्यान तो नहीं दिया।
बाद में सरकार ने केके चेतुर की अगुवाई में एक टीम को जापान भेजा, जिसने इस खजाने से जुड़े एक और शख्स पर उंगली उठाई और इनका नाम था S.A Iyer । टीम का कहना था कि फॉरेन मिनिस्ट्री को दी अपनी रिपोर्ट में जापान में रहने वाले भारतीयों का मानना है कि राममूर्ति और अय्यर का आपस में क्लोज रिलेशन है।
चेतुर का मानना था कि अय्यर ने ही टोक्यो जाकर खजाने की बंदरबांट की थी। इन बातों के सामने आने के बाद वेस्ट बंगाल गवर्नमेंट ने नेहरू गवर्नमेंट से इस मामले की जांच की मांग की। इसके रिप्लाई में तब प्राइम मिनिस्टर नेहरू ने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग और इनसे जुड़ी प्रॉपर्टी की डिटेल्स दी।
उन्होंने एक लेटर में लिखा कि थाइलैंड, सिंगापुर और बर्मा से जो पैसा रिकवर हुआ, उसे इंडियन रिलीफ फंड में जमा करवा दिया गया और उससे इंडियन स्टूडेंट्स की पढ़ाई का इंतजाम किया जा रहा है। वहीं सिंगापुर में जो आईएनए के फंड मिले, उसके तीसरे हिस्से पर पाकिस्तान ने भी अपना हक जताया था, जिससे उन्हें दे दिया गया।
हालांकि इसमें नेताजी के साथ प्लेन में शामिल खजाने का जिक्र नहीं था। इस मामले पर जब नेहरू गवर्नमेंट पर प्रेशर बनाया गया तब उन्होंने 1956 में एक जांच कमेटी बनाई। इस कमेटी में आईएनए के पूर्व मेजर जनरल नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस और भारतीय सिविल सेवा के एसएन मैत्रा शामिल थे।
हालांकि खजाने को लेकर ये कमेटी कुछ जानकारी दे नहीं सकी। नेताजी की मौत से जुड़े रहस्यों के बारे में ही इस कमेटी का मेन फोकस रहा। वहीं 1971 में जस्टिस जीडी खोसला को नेताजी की मौत और उनके खजाने से जुड़े मामलों की जांच की जिम्मेदारी दी गई।
उनके सामने जापान में रहने वाले दो भारतीय इस कमेटी के आगे पेश हुए। इन दोनों ने भी दावा किया कि खजाने की लूट खसोट हुई है। वहीं टोक्यो के एक जर्नलिस्ट ने भी कमीशन के सामने दावा किया था कि 1945 में एसएस अय्यर जापान आए थे और उन्होंने राममूर्ति को सोने से भरे दो सूटकेस दिए थे ।
खोसला कमीशन ने अपनी फाइनल रिपोर्ट में माना कि खजाने में लूट हुई लेकिन सबूत न मिलने के कारण मामला अधूरा ही रह गया। इस मामले में पंडित नेहरू पर भी आरोप लगता है कि उन्होंने नेताजी की आईएनए के खजाने को चुराने का शक जिस एसएस अय्यर पर जाता है, उसे फाइव ईयर प्लान का पब्लिसिटी एडवाइजर बना दिया था।
आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी नेहरू जी की जो उन्होंने एक इल्जाम लगे हुए इंसान को एडवाइजर की गद्दी सौंप दी। हालांकि इस मामले में आज तक किसी पर आरोप साबित नहीं हो सका है। ऐसे में आईएनए के खजाने का क्या हुआ ये आज भी एक मिस्ट्री ही है।
नेताजी की मौत से जुडी कुछ और थ्योरी
अब दोस्तों ये तो हो गई खजाने के रहस्य की बात, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़ी कई षड्यंत्रकारी थ्योरी हमेशा चलती रहती हैं।
एक ऐसी ही थ्योरी है कि नेताजी 18 अगस्त 1945 की प्लेन क्रैश में बचकर रूस चले गए थे। कुछ लोगों का तो ये भी दावा है कि नेताजी 1966 में रूस के ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री के साथ मौजूद थे। कुछ ऐसे ही सवाल एक फोटो को लेकर उठ रहे हैं।
ब्रिटिश एक्सपर्ट्स ने फोटो मैपिंग कर इसमें शास्त्री के पीछे नेताजी जैसा शख्स खड़ा होने का दावा किया है। लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी मौत से 40 मिनट पहले रूस से फोन आया था, जिसमें उनके पिताजी ने कहा था कि वो देश आकर एक बड़ी खबर देंगे। शायद ये खबर सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने की हो सकती थी।
कई जगह तो ये भी दावा किया जाता है कि पंडित नेहरू और उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी इस राज को जानती थीं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिंदा हैं। वाकया 1948 के आसपास का है, इस समय विजयलक्ष्मी सोवियत रूस से भारत आई थीं।
उन्होंने मुंबई के सांताक्रूज हवाई अड्डे पर घोषणा की थी कि वो भारतवासियों के लिए अच्छी खबर लेकर आई हैं। वो खबर नेताजी के जिंदा होने की मानी जाती है। लेकिन बाद में उन्होंने अपने भाई से मिलने के बाद यह खबर किसी को नहीं बताई।
वहीं रिटायर्ड मेजर जनरल बख्शी अपनी बुक में दावा करते हैं कि नेताजी के रूस जाने के बाद ये खबरें भी आती रहीं कि उन्हें रूस के सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया और वहीं की जेल में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। तो वहीं कुछ लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टालिन की मौत के बाद 1950 के दशक के आखिरी में वे भारत चले आए और नॉर्थ यूपी में गुमनामी बाबा के रूप में रहने लगे।
इसके बाद तंत्र साधना कर शक्तियां प्राप्त की। अपने सफर के दौरान बाबा ने दलाई लामा की मदद की और एशियन कंट्रीज में कई सीक्रेट मिशन पूरे किए। 16 दिसंबर 1985 को उनका निधन हो गया। सरकार ने 28 जून 2016 को इस मामले की जांच के लिए कमेटी भी बनाई, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि गुमनामी बाबा नेताजी के फॉलोअर थे, लेकिन नेताजी नहीं थे।
नेताजी पर चलने वाले किसी भी थ्योरीज का आज तक कोई प्रूफ नहीं मिल सका है। उनकी मौत पर ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों ने जांच की, लेकिन अधिकतर में 18 अगस्त 1945 को ही प्लेन में उनकी मौत की बात सामने आई थी। 2017 में एक आरटीआई के जवाब में इंडियन गवर्नमेंट ने भी यही बात कही।
निष्कर्ष
तो दोस्तों आप क्या सोचते हैं नेताजी के मौत के बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताइयेगा। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो कृपया करके इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करियेगा। अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।