क्या आप जानते हैं दक्षिण भारत में प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर और भगवान अयप्पा की यह रहस्मय कहानी

क्या आप जानते हैं दक्षिण भारत में प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर और भगवान अयप्पा की यह रहस्मय कहानी। | Mysterious Facts In Hindi

Mysterious Facts In Hindi: भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार। एक ऐसी सुंदर स्त्री जिसके रूप को देखकर सभी देवता और असुर मोहित हो गए थे। 

समुद्र मंथन के बाद जब अमृत को हासिल करने के लिए असुरों और देवताओं के बीच जंग छिड़ गई तो विष्णु जी ने इस रूप को धारण किया था, जिसे देखकर असुरों का ध्यान भटक गया और अमृत देवताओं को मिला।  विष्णु जी का मोहिनी रूप इतना सुंदर था कि स्वयं महादेव भी उनसे आकर्षित हो गए थे। 

वह मोहिनी का पीछा करने लगे और तब शिव जी और मोहिनी के मिलन से एक बालक का जन्म हुआ था जिनका नाम था भगवान अयप्पा। 

भगवान अयप्पा एक ऐसे भगवान हैं जिनका जन्म दो पुरुष शक्तियों के मिलन से हुआ था, जिनके सम्मान में केरला के खूबसूरत पहाड़ों के बीच एक अद्भुत मंदिर बना हुआ है। 

इनके दर्शन करने से पहले भक्तों को दो महीने तक एक ब्रह्मचारी की तरह कड़ी तपस्या करनी होती है जिसके बाद ही वह इस मंदिर में जा सकते हैं। सिर्फ यही नहीं इस मंदिर में जाने से पहले भक्त को वहां की एक मस्जिद के दर्शन करना भी ज़रूरी होता है। 


Why Ayyappa Devotees have to Visit Masjid First?


सबरीमाला मंदिर की पूरी कहानी

समुद्र तल से 3000 फीट ऊपर बसा शबरीमाला मंदिर उन चंद हिन्दू मंदिरों में से एक है, जिसके द्वार हर धर्म और जाति के लोगों के लिए खुले हैं। इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले और भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने से पहले लोग वहां बनी मस्जिद में जरूर जाते हैं। 

यह मस्जिद एक मुस्लिम संत वावर के सम्मान में बनी है जो भगवान अय्यप्पा के मित्र और भक्त हुआ करते थे। भगवान अय्यप्पा को ब्रह्मांड पुराण में महान शास्ता कहा गया है। एक ऐसे देवता जो इस दुनिया में पापों का संहार करने के लिए आए थे, जो केरला के एक मुख्य देवता भी हैं। 

ऐसा माना जाता है कि कुदरत के नियमों के खिलाफ जाकर एक अनोखे मिलन से पैदा हुए भगवान अय्यप्पा को स्वर्ग के देवताओं ने अपनाने से मना कर दिया और इसलिए शिवजी और मोहिनी ने इस बालक को धरती पर लाकर पंबा नदी के किनारे छोड़ दिया। 

एक पौराणिक साउथ इंडियन पुस्तक में लिखी कहानी के अनुसार एक बार पंडालम वंश के राजा राजशेखर शिकार के लिए पंबा नदी के पास जंगल में आए थे। 

तब उन्हें नदी के किनारे एक नन्हा बालक दिखा जिसके गले में एक मणि की माला थी और वह सोचने लगे कि इतने छोटे बालक को यहां कौन छोड़ गया होगा। दरअसल राजा राजशेखर की कोई संतान नहीं थी। इसीलिए वह और उनकी पत्नी काफी समय से शिव जी की आराधना कर रहे थे। 

उन्हें जब उस बालक के आसपास कोई नहीं दिखा तो उन्हें लगा कि शिवजी ने प्रार्थना स्वीकार कर ली है। वह उस बालक को शिवजी का आशीर्वाद मानने लगे और उसे अपने साथ महल ले गए और उसका नाम रख दिया मणिकंठन। 

मणिकंठन एक बहुत होशियार बालक था, लेकिन राजशेखर की पत्नी उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। वह नहीं चाहती थी कि किसी जंगल से उठाया हुआ बालक उनके वंश का दीपक बने। 

जैसे जैसे मणिकंठन बड़ा हुआ, रानी उससे छुटकारा पाने के तरीके सोचने लगी और फिर एक दिन उन्होंने एक योजना बनाई। 

उन्होंने बीमार होने का नाटक किया और जब मणिकंठन उनसे मिलने आया तो उन्होंने उससे कह दिया कि उनकी हालत बहुत खराब है और वैद्यजी ने कहा है कि उन्हें बचाने के लिए सिर्फ एक औषधि काम आ सकती है, पर उसके लिए शेरनी की दूध की जरूरत होगी। 

यह सुनकर मणिकंठन तुरंत जंगल जाने के लिए तैयार हो गए और उसकी मां यह सोचकर खुश हुई कि दूध निकालने के प्रयास में 12 साल का मणिकंठन आसानी से शेरनी का शिकार बन जाएगा। लेकिन जंगल में मणिकंठन का एक अलग ही खतरे से सामना हुआ। 

मणिकंठन जैसे ही जंगल में गए, अचानक महिषी नाम की एक राक्षसी ने उन पर हमला कर दिया। महिषी जो महिषासुर नाम के राक्षस की बहन थी, जब से मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था महिषी स्वर्ग लोक और भूलोक पर तबाही मचा रही थी। 


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महिषी को ब्रह्माजी से यह वरदान मिला था कि उसे सिर्फ एक ऐसा शख्स मार सकता है, जिसका जन्म दो पुरुष शक्तियों के मिलन से हुआ हो और यही कारण था कि वह इतनी खतरनाक थी। कोई भी देवता उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था। 

पर महिषी नहीं जानती थी कि मणिकंठन का जन्म भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार और शिवजी के मिलन से हुआ था और वही उसके अंत का कारण बनने वाला था। 

जैसे ही महिषी ने मणिकंठन पर हमला किया, मणिकंठन ने बिना कुछ सोचे समझे उस पर वार कर दिया और उसी समय उन्हें अपनी असली शक्ति का एहसास हुआ और वह समझ गए कि वह कोई आम नहीं बल्कि एक देवता है जिनका जन्म ही इस राक्षसी का संहार करने के लिए हुआ था। 

और देखते ही देखते कुछ ही पलों में मणिकंठन ने महिषी का वध कर दिया। माना जाता है जैसे ही भगवान अयप्पा ने महिषी का वध किया उसके मृत शरीर से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई। 

उस कन्या ने हाथ जोड़कर उन्हें धन्यवाद दिया और बताया कि उसका नाम मालिकापरम था और उसे एक ऋषि ने राक्षसी बनने का श्राप दिया था और उस राक्षसी के वध के बाद ही यह श्राप टूट सकता था। 

यह सुनकर भगवान अयप्पा ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे कहा कि अब वह अपना जीवन अपनी इच्छा के अनुसार जी सकती है। लेकिन फिर उस कन्या ने एक ऐसी इच्छा व्यक्त की जिसे सुनकर भगवान अयप्पा दुविधा में पड़ गए। 

उसने कहा कि वह उनकी पत्नी बनकर जीवनभर उनकी सेवा करना चाहती है पर यह मुमकिन नहीं था। भगवान अयप्पा ने ब्रह्मचर्य का प्रण लिया था, जिसके चलते वह किसी से भी विवाह नहीं कर सकते थे। 

लेकिन उसकी इच्छा का मान रखते हुए उन्होंने उससे कहा, मैं आज से जंगल में जाकर गहरे तप में लीन हो जाऊंगा और दूर दूर से भक्त कठिन यात्रा तय कर मुझसे मिलने आएंगे। लेकिन जिस दिन इन भक्तों का आना बंद होगा, उस दिन मैं तुमसे विवाह कर लूंगा।

भगवान अय्यप्पा की यह बात सुनकर मालिका पुरम खुश हुई और उसने तय किया कि वह उन्हीं के धाम से कुछ ही दूरी पर बैठकर इस वचन के पूरे होने का इंतजार करेंगी और उन्हीं के सम्मान में शबरीमला मंदिर की दाई तरफ कुछ ही दूरी पर मालिकापुराथम्मा मंदिर बनाया गया है। 

मान्यता के अनुसार पहली बार शबरीमला की यात्रा पर जाने वाले भक्त को कणी अयप्पन या कणी स्वामी कहा जाता है और कहते है कि जिस साल कोई भी कणी स्वामी इस यात्रा में शामिल नहीं होगा उस साल ही भगवान अय्यप्पा अपना ये वादा पूरा करेंगे। 

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगाई जाने वाली पाबंदी की यह एक अहम वजह मानी जाती है क्योंकि मालिका पुरम मां का आदर रखते हुए किसी भी और महिला को भगवान अयप्पा के करीब जाने की इजाजत नहीं होती। 

वही कुछ तांत्रिक ग्रंथ यह भी कहते हैं कि जब भी कोई ब्रह्मचारी की तरह जीने का फैसला करे तो उसे ऑपोजिट सेक्स से कोई कॉन्टैक्ट नहीं रखना चाहिए और इसीलिए शबरीमला मंदिर में यह नियम बनाया गया था। 

हर साल मकर संक्रांति के दिन पूरे शबरीमला मंदिर और आसपास के इलाके की सजावट होती है और लाखों की संख्या में भक्त अपने भगवान के दर्शन लेने आते हैं। मंदिर के परिसर में इकट्ठा होकर पूर्व दिशा में मकर ज्योति नाम का सितारा दिखने का इंतजार किया जाता है। 

इस सितारे के दिखते ही पूरे मंदिर को दीयों से सजाया जाता है और शुरुआत होती है यहां मनाए जाने वाले साल के सबसे बड़े त्योहार मकर लग्न की। शबरीमला मंदिर में हर साल धूमधाम से मनाए जाने वाले इस त्योहार की जड़ें रामायण की एक अनसुनी कहानी से जुड़ी है। 

कहते हैं कि जब मणिकंठन  के रूप में भगवान अय्यप्पा एक जंगल में गहरे तप में लीन थे, तब उनकी मुलाकात भगवान श्री राम से हुई थी। 

कहानी के अनुसार जब श्री राम अपने भक्त शबरी से मिलकर लौट रहे थे तब उन्होंने भगवान अय्यप्पा को एक गहरी साधना में बैठे देखा और जैसे ही श्री राम उनकी ओर बढ़े उन्हें एहसास हुआ कि महाविष्णु का अवतार और अयोध्या के राजकुमार श्री राम स्वयं उनसे मिलने आए हैं और वह कुछ देर के लिए अपने तप से बाहर आए और श्री राम से मिले। 

माना जाता है कि जिस तरह मकर संक्रांति के दिन भगवान अय्यप्पा अपना तप छोड़कर श्री राम से मिले थे, ठीक उसी तरह हर साल इस दिन वह अपने तप से बाहर निकल अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं। 

लेकिन यहां के मुख्य मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए भक्तों को लगभग दो महीने पहले शुरू होने वाली यात्रा में शामिल होना पड़ता है। जिसके बाद ही वह करीब से भगवान अय्यप्पा के दर्शन कर सकते हैं। लेकिन यह यात्रा बिल्कुल भी आसान नहीं होती। 

शबरीमला की यात्रा दिसंबर और जनवरी के महीनों में होती है, जिसका अंत मकर वेल्डग फेस्टिवल के साथ होता है और इस यात्रा के अलग चरण और नियम होते हैं जिन्हें हर एक यात्री को निभाना पडता है। 

यात्रा के पहले दिन हर एक यात्री को एक रुद्राक्ष या तुलसी की माला पहनाई जाती है, जिसके बाद उन्हें 41 दिन तक एक कड़े व्रत को निभाना होता है, जिसमें उन्हें एक ब्रह्मचारी की तरह जीना पडता है और सिर्फ सात्विक खाना खाने की इजाजत होती है। 

गुस्सा, डर, ईर्ष्या जैसी भावनाओं पर काबू पाकर उन्हें सच और धर्म के रास्ते पर चलना होता है और अपने आस पास के हर इंसान को भगवान का रूप समझकर उनकी सेवा और सहायता करनी होती है। 

भगवान अयप्पा के भक्तों का मानना है कि इस मंदिर में आप भगवान को सिर्फ स्पिरिचुअल ही नहीं बल्कि फिजिकली भी महसूस कर सकते हो। 

लेकिन उसके लिए आपके मन और शरीर का शुद्ध होना जरूरी है जो इस 41 दिन के कड़े व्रत के बाद ही पॉसिबल होता है। 

केरला के पांच श्री धर्मशास्त्र मंदिरों में से एक शबरीमला मंदिर आज दुनिया के सबसे बड़े पिलग्रिम एज के नाम से जाना जाता है, जहां हर साल करोड़ों लोग भगवान अय्यप्पा के दर्शन करने और यहां पर मनाए जा रहे मकर फेस्टिवल में शामिल होने आते हैं। 

क्या आप में से किसी ने इस त्योहार को एक्सपीरियंस किया है? क्या आप शबरीमला की इस कठिन यात्रा को पूरा कर यहां जाना चाहोगे? अपने जवाब हमें कमेंट में जरूर बताएं। 

Vinod Pandey

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