दोस्तों अयोध्या राम जन्मभूमि में असली विवाद शुरू होता है 1528 से जब अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मस्जिद का निर्माण किया गया। कहा जाता है मुगल सम्राट बाबर ने जानबूझकर राम जी के जन्म स्थल के ऊपर मस्जिद बनवाई थी इसीलिए इसे बाबरी मस्जिद के नाम से पहचाना जाने लगा।
यह सिलसिला काफी समय लंबा चला। उस वक्त देश पर मुगलों का राज था, इसलिए कोई कुछ नहीं कर पाया। लेकिन फिर आता है 1855। देश में अंग्रेजों का राज, जिस दौरान हिन्दू मुस्लिम दंगा हुआ और फिर बाबरी मस्जिद के सामने एक बाहरी घेरा बना दिया गया।
इस कार्रवाई ने हिन्दुओं को आंतरिक आंगन तक पहुंचने से रोक दिया, जिसने उन्हें बाहरी आंगन में एक मंच पर प्रसाद चढ़ाने के लिए प्रेरित किया और यहीं से हिन्दुओं के अंदर राम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने की चिंगारी लग गई, जिसने साल 1856 और 57 में आग बनकर दंगे का रूप ले लिया।
बाबरी मस्जिद और हनुमान गढ़ी में काफी बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ। इतिहासकार बताते हैं इस घटना से पहले मुसलमान और हिन्दुओं दोनों की ही पहुंच पूजा के लिए मस्जिद क्षेत्र तक थी। लेकिन दंगा इतना बड़ा था कि मस्जिद के बाहर ईंट की दीवार खड़ी कर दी गई ताकि कोई अंदर न जा सके।
फिर आता 1858 अवध के थानेदार को बाबरी मस्जिद के अधिकारी से शिकायत मिलती है कि 25 निहंग सिख मस्जिद में घुस गए। न सिर्फ मस्जिद में दाखिल हो गए हैं बल्कि वहां पर हवन पाठ भी कर रहे हैं और उन्होंने मस्जिद की दीवारों पर राम का नाम भी लिख दिया।
दोस्तों, मस्जिद में घुसकर हवन करने वाले उन निहंग सिख का नाम बाबा फकीर सिंह खालसा था। रामजन्मभूमि की लड़ाई लड़ते हुए हर एक इंसान का मानना है कि अगर 165 सालों की कानूनी लड़ाई के बाद आज मंदिर बन रहा है तो उसमें एक अहम योगदान बाबा फकीर सिंह खालसा और उनके साथ उस दिन विवादित ढांचे में घुसे उन 24 निहंग सिखों का है, क्योंकि उन्हीं लोगों के कारण विवाद पुलिस में दर्ज हुआ।
इन 25 वीर सिखों ने ऐसी हिम्मत दिखाई कि उसके बाद न जाने कितने लोग उनके रास्ते पर चलते चले गए और फिर 1859 में विवादित स्थल पर बाड़ लग गई और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिन्दुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी गई।
साल 1885 में महंत रघुवर दास ने रामजन्म स्थान के महंत होने का दावा करते हुए एक मुकदमा दायर किया, जिसे 1885 का मुकदमा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कुछ हिंदुओं ने मूर्तियां वहां रख दी थी और इसी के साथ देश की सरकार इस पूरे क्षेत्र को विवादित घोषित करके यहां पर ताला लगा देती है।
16 दिसंबर 1949 को केके नैय्यर ने उत्तर प्रदेश के गृह सचिव गोविंद नारायण को बाबरी मस्जिद स्थल पर एक ऐतिहासिक मंदिर के बारे में सूचित किया। अब तक लोग बाबरी मस्जिद वाली जमीन को विवादित समझ रहे थे। कोई भी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा था।
लेकिन इस घटना के बाद मस्जिद स्थल पर ऐतिहासिक मंदिर होने की बात पर विचार किया गया। फिर 1984 में कुछ हिंदुओं ने विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में भगवान श्री राम के जन्म स्थल को मुक्त करने और वहां पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया और फिर बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के लालकृष्ण आडवानी ने अपने कंधों पर संभाला जिसका असर कुछ ही समय में दिखने लगा।
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तभी तो साल 1986 में जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विभाजित मस्जिद के दरवाजे पर से ताला खोलने का आदेश दे दिया। यह बात मुसलमानों को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी और उन्होंने बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।
साल 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने राममंदिर निर्माण के लिए अभियान और तेज कर दिया और विवादित स्थल के नजदीक राममंदिर का शिलान्यास किया। साल 1990 में विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने विवाद सुलझाने का काफी प्रयास किया, लेकिन अब यह विवाद शांत होने वाला नहीं था। लालकृष्ण आडवाणी ने आंदोलन के लिए समर्थन बढ़ाने के मकसद से गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा शुरू की।
इस बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे और फिर आता है साल 1992, जब विश्व हिन्दू परिषद, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप देशभर में हिन्दू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें दो हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए।
फरवरी 2002 को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राममंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया। विश्व हिन्दू परिषद ने राममंदिर का निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी।
13 मार्च 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अयोध्या में जैसी स्थिति है, वैसी बरकरार रखी जाएगी और किसी को भी सरकार द्वारा शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी। और फिर कोर्ट के आदेश पर विवादित स्थल की खुदाई शुरू की गई।
फिर साल 2003 में खुदाई के बाद पता चला कि उसमें मंदिर से मिलते जुलते अवशेष मिले हैं। अप्रैल 2004 में लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी मंदिर में पूजा की और कहा, मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा।
30 सितम्बर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में अयोध्या में विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान। लेकिन विवाद अभी भी नहीं थमा था। जिसके बाद दोबारा कोर्ट से गुजारिश की गई और फिर साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरी विवादित जमीन रामलला को सौंपने का आदेश दिया।
वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दी गई। इसके बाद साल 2020 में अयोध्या जन्मभूमि में राममंदिर का निर्माण शुरू हुआ और 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा करके सालों से चल रहे इस विवाद को खत्म कर दिया गया।
लेकिन इसके पीछे के रियल हीरोज के बारे में कोई नहीं जानता, जिन्होंने राम मंदिर को बनाने में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। ऐसे ही दिव्य पुरुष हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी।
अगर हम यह कहें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी वर्तमान समय के सबसे विद्वान शख्स हैं तो गलत नहीं होगा, क्योंकि इन्हीं के एक विवाद से पूरे के पूरे अयोध्या विवाद की गुत्थी सुलझा दी गई।
15 जनवरी 1950 को जन्में जगद्गुरु जी के पैदा होने के दो महीने बाद ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई और वह न लिख सकते थे, न पढ़ सकते थे, न ही ब्रेल लिपि का उपयोग कर सकते थे। वो सिर्फ चीजें सुनकर याद रखते थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने 22 भाषाओं में महारत हासिल की है।
सुप्रीम कोर्ट में जब अयोध्या विवाद पर बहस चल रही थी तो दूसरा पक्ष यह साबित करने में लगा था कि भगवान श्रीराम का कोई वजूद नहीं था। भगवान श्रीराम का अयोध्या से कोई नाता था भी या नहीं, यह भी सत्य नहीं है।
तब जगद्गुरु की एक गवाही ने पूरा केस पलट दिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में वेद पुराण के साथ रामलला के पक्ष में गवाही दी थी। उन्होंने ऋगवेद से उदाहरण देकर बताया कि सरयू नदी से भगवान राम के जन्म स्थल की दिशा और दूरी क्या थी।
और फिर जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा बताए गए अध्यायों को जब खोलकर देखा गया तो उनकी बताई बात बिल्कुल सही निकली और इसी ने कोर्ट को अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया।
आज इन्हीं की वजह से हम राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा देख पाएं हैं, जिस पर आपका क्या कहना है, कमेंट में बताइएगा हमे जरूर बताइयेगा। जय श्री राम।