Financial Freedom के वह 5 नियम जो किसी भी स्कूल में नहीं सिखाये जाते हैं

दोस्तों आज का आर्टिकल एक बहुत ही इंटरेस्टिंग और इम्पोर्टेन्ट टॉपिक के ऊपर है जो है फाइनेंशियल फ्रीडम के पांच रूल्स। ये पांचों ऐसे कॉन्सेप्ट हैं जो हमें स्कूल में सिखाए नहीं जाते और इसीलिए मेजॉरिटी लोग जब अपनी 50s  में पहुंचते हैं तब जाकर उनको ये बातें समझ में आती है। लेकिन तब तक ऑलरेडी बहुत लेट हो चुका होता है और उनको रिग्रेट होता है कि उन्होंने अपनी लाइफ का इंपॉर्टेंट टाइम वेस्ट कर दिया। तो अगर आप अभी अपनी 20s में हो तो ये पाँच रूल्स आपको जानना बहुत इम्पोर्टेन्ट होगा। 

5 RULES For Early Financial Independence


Financial Freedom के वह 5 नियम जो किसी भी स्कूल में नहीं सिखाये जाते हैं 

तो एक स्टोरी की हेल्प से आज हम इसे सीखेंगे। तो यहां पर हम रॉकी और सनी का एग्जांपल लेते हैं जो दोनों कॉलेज फ्रेंड हैं और दोनों 21 साल के हैं और एक टॉप कॉलेज में पढ़ाई करते हैं । 

उनकी डिग्री कंप्लीट होते ही उन्हें एक बडी कंपनी में जॉब मिल जाती है और कंपनी उनको पर मंथ की सैलरी देती है। अब सनी का बचपन से ड्रीम था कि वो अपना खुद का घर खरीदे। फिर शान से अपने घर से अपनी कार से ऑफिस में जाए और फाइनली इस जॉब से वो अपने उस ड्रीम को पूरा होता हुआ देख रहा था तो उसने फौरन एक बढिया सा 3 BHK अपार्टमेंट जो काफी अच्छे लोकेशन पर होता है उसे लोन पर ले लेता है। 

इसे देखकर उसके घरवाले और फ्रेंड्स काफी ज्यादा इंप्रेस थे क्योंकि उसके डैडी ने अपना घर अपनी 40s की उम्र  में लिया था। लेकिन यहां पर सनी ने घर खरीद तो लिया पर बात ये थी कि उसके घर का मंथली EMI 12 हज़ार रुपए का था जिसपर उसको 20 साल का लोन चुकाना था। फिर वो एक बढ़िया सी कार लोन पर लेता है जिसका मंथली EMI होती है छह हज़ार रुपया। 

फिर बाकी दूसरे एक्सपेंसेज जैसे लाइट, वॉटर, गैस बिल, कार के लिए पेट्रोल और खाने की ग्रॉसरी, ये सब मिलाकर होते ऑलमोस्ट आठ हज़ार रुपए। और फिर सनी को हमेशा से बडे होटल्स में खाना, क्लब और पार्टी में जाना बहुत पसंद था और क्योंकि अब उसकी अच्छी जॉब लग गई थी तो उसको बहुत सारे बैंक से क्रेडिट कार्ड के ऑफर्स भी आने लगे तो उसने कुछ क्रेडिट कार्ड भी ले लिए और फिर वो बिंदास उससे शॉपिंग करने लगा क्योंकि उसको टेंशन लेने की जरूरत नहीं है। 

आखिरकार उसके पास एक मल्टीनेशनल कंपनी का सेफ जॉब है। तो वो बहुत ही बढिया लाइफ जी रहा था। हर वीकेंड वो पार्टी करता या कहीं घूमने जाता। बस एक छोटी सी प्रॉब्लम थी कि मंथ एंड होते ही उसके बैंक अकाउंट में कुछ भी पैसे बचते नहीं थे। 

दूसरी तरफ उसका फ्रेंड रॉकी लोन लेने में बिलीव नहीं करता था। सनी के होम लोन लेने के बाद भी रॉकी अपने आप को कंट्रोल करता है क्योंकि उसने काफी सारी पर्सनल फाइनेंस की पढ़ी थी और उसको एक लाइन याद थी कि दूसरों को दिखाने के लिए पैसा खर्चा करना गरीब होने का सबसे आसान तरीका है और इसीलिए वो अपने लिए एवरेज बिल्डिंग में वन बेडरूम, हॉल, किचन वाला अपार्टमेंट रेंट पर लेता है। 

वो भी ऐसी बिल्डिंग में जो सिटी से थोडी दूर होती है ताकि उसका रेंट कम होगा। क्योंकि उसके ऑफिस के आसपास के एरिया में फिलहाल रेंट काफी ज्यादा था। उसका रेंट होता है पाँच हज़ार रुपए पर मंथ और क्योंकि उसका घर रेंट पर था तो उसे काफी सारे मेंटेनेंस कॉस्ट पे नहीं करने पड़ते थे। और उसका बाकी का जैसे इलेक्ट्रिक, गैस, और वॉटर बिल ये सब का खर्चा आठ हज़ार रुपए का होता था क्योंकि वो खाना थोडी अच्छी क्वालिटी का खाता था। 



और उसने फिलहाल कोई कार नहीं खरीदी क्योंकि उसे लगता है कि कार डेप्रिसिएशन एसेट है जिसकी वैल्यू टाइम के साथ कम होती है तो वो ऑफिस की बस से ट्रैवल करता। अब रॉकी को भी बाहर घूमना पसंद था लेकिन सबसे पहले उसने अपने लिए एक बजट बनाया क्योंकि उसको पता है कि अगर बजट पहले से नहीं बनाया गया तो ये खर्चा ज्यादा हो सकता है। 

तो वो हर रोज घर से खाने का टिफिन ऑफिस लेकर जाता और इसके साथ उसने फैसला किया कि वो हर महीने सिर्फ ₹3,000 एंटरटेनमेंट के लिए और शॉपिंग के लिए स्पेंड करेगा। जैसे कभी कभी वो मूवी देखने जाता या दो तीन महीने पहले से ही  प्लान करके वो कोई हिल स्टेशन पर जाता। तो इसी तरह उसकी सैलरी का मंथली खर्चा ₹15000 हो रहा था और बाकी के ₹15000  वो सेव कर रहा था। 

वो काफी हंबल और सिंपल लाइफ जी रहा था और यहीं पर मुझे एक साइकोलॉजी ऑफ मनी का एक कोट याद आता है कि सेविंग इज द गैप बिटवीन योर इनकम। इसका मतलब क्या होता है? हम इसे आर्टिकल में आगे डिस्कस करेंगे। तो सेव किये पैसों को उसने प्लान किया कि वो उसे स्टॉक्स और म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट करेगा तो सबसे पहले उसने एसआईपी यानी सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान सेट कर दिया पाँच हज़ार रुपए का। 

मतलब ये अमाउंट उसकी सैलरी से ऑटोमॅटिकली  बैंक से अपने आप निकल जाता है और इन्वेस्ट हो जाता है। और बाकी के 10 हज़ार रुपए का वो खुद रिसर्च करके अच्छी कंपनी का स्टॉक लेता। तो ये सब खर्च होने के बाद भी उसके पास मंथ एंड में एक्स्ट्रा पैसे बच जाते थे। 

और इसके साथ में रॉकी सनी को एडवाइज भी करता था कि उसे थोडा सेविंग और इन्वेस्ट करना चाहिए। लेकिन उसके बदले सनी हमेशा उसका मजाक उड़ाता था कि यार रॉकी थोडा तो लाइफ को एन्जॉय किया कर, अपनी जवानी में एंजॉयमेंट नहीं करेगा तो कब करेगा। तू कितना कंजूस है। मेरे पास गाडी है, घर है, तेरे पास क्या है? 

तो इसी बीच इन दोनों की अलग अलग सोच की वजह से एक दिन इन दोनों का झगड़ा हो गया और इस दिन के बाद इन दोनों की कभी बात नहीं हुई और सनी को दूसरे डिपार्टमेंट में ट्रांसफर कर दिया गया। तो फिर दोनों एक दूसरे से मिलते भी नहीं थे। इसी तरह काफी साल गुजर गए। एक तरफ सनी ने बहुत सारे नए दोस्त बना लिए क्लब में घूमकर और अपने घर पर वीकेंड पार्टी करके। 

दूसरी तरफ रॉकी ने अपने सेव किये पैसों को अच्छे स्टॉक्स में लॉन्ग टर्म के लिए इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया और साथ में उसने अपना एक ऑनलाइन बिजनेस भी शुरू किया जिसमें उसने एक एंप्लॉई को रखा। शुरुआत में रॉकी को ऑनलाइन बिजनेस सेटअप करने में काफी मेहनत लगी लेकिन धीरे धीरे करके वो सेट हो गया। 

अब इम्प्लॉइज की सैलरी देने के बाद उसका 10 से ₹15,000 का प्रॉफिट वहां से निकलता था, जो धीरे धीरे करके ग्रो होने लगा। तो अब उसकी इनकम बढ़ रही थी, पैसे अलग अलग जगह से आ रहे थे लेकिन उसने फिर भी अपना एक्सपेंस बढाया नहीं। वो वही टिफिन लेकर ऑफिस जाता और ऑफिस की बस से ट्रैवल करता। 

क्योंकि जब भी वो अपना खर्चा बढ़ाने का सोचता तो उसके दिमाग में यही फोटो आता कि अगर वो अपने एक्सपेंस बढाते रहेगा तो वो इस रैट रेस में हमेशा हमेशा के लिए फंस जाएगा और उसे जल्दी से जल्दी इस रैट रेस से निकलना था। 

तो ये सब चीजें वो साइलेंटली कर रहा था क्योंकि ये सारा कैलकुलेशन उसके दिमाग में था और इसीलिए उसको देखकर कोई पता नहीं लगा पा रहा था कि वो एक्चुअली मैं अपने फ्री टाइम में करता क्या है। सबको यही लगता था कि वो अपने फ्री टाइम में कंप्यूटर में वीडियो गेम खेलता होगा या बोरिंग बुक्स रीड करता होगा। क्योंकि दूर से उसका लाइफस्टाइल काफी बोरिंग दिख रहा था और इसीलिए कोई उसे रोल मॉडल की तरह देख नहीं रहा था। 

मतलब उसके फ्रेंड्स उसे कॉपी नहीं करते थे बल्कि सनी की लाइफ को कॉपी करते थे। इसी तरह सात आठ साल निकल गए। फिर एक दिन अचानक से देश में कोरोना शुरू हो जाता है, जिसकी वजह से पूरी कंट्री में रिसेशन आ जाता है। लोग शॉपिंग करना बंद कर देते और जिस कंपनी में रॉकी और सनी काम करते थे, उस कंपनी के बुरे दिन चालू हो जाते। 

इनफैक्ट कंट्री की सारी कंपनी उस टाइम पर स्ट्रगल कर रही होती है, तो उनकी कंपनी को सर्वाइव करने के लिए मजबूरन अपने 500 एंप्लॉयीज को निकालना पड़ता है, जिसमें सनी और रॉकी दोनों का नाम होता है। ये बात दोनों को शॉकिंग लगती है क्योंकि जॉब से फायर होना किसको पसंद है। लेकिन रॉकी को इतना टेंशन नहीं होता है क्योंकि उसने हमेशा चार कदम आगे का सोचा। 

उसने इस फायर के बदले अपने दूसरे FIRE का इंतजाम कर लिया था। उसके पास इमरजेंसी फंड थे। बहुत सारी कंपनी से उसको पैसिव इनकम की तरह डिविडेंड मिल रहा था और उसका एक ऑनलाइन बिजनेस भी चल रहा था। लेकिन सनी ये layoff की बात सुनकर हक्का बक्का रह गया। उसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। 

उसको लगता था कि जॉब सिक्योरिटी रियल होती है क्योंकि बचपन से वो यही सुनता आ रहा था। लेकिन जैसे ही उसको जॉब से निकाला गया तो बैंक का होम लोन और कार लोन डिपार्टमेंट सनी के पीछे पड़ गया। क्योंकि उसके 20 साल के होम लोन में से आधा लोन तो अभी बाकी था और कार लोन का भी दो साल अभी बाकी था। उसके इतने सारे फ्रेंड्स जिनको वो अपना मानता था अब उसको उनकी रियलिटी पता चलने लगी। 

सच ये है कि इस टाइम पर सबकी हालत खराब थी इसलिए उसको अपने रिश्तेदारों और अपने घरवालों से उधार लेकर गुजारा करना पडा। लेकिन ये भी हमेशा नहीं चल सकता था। तो फाइनली उसने फैसला किया कि वो अपनी कार बेच देगा। लेकिन रिसेशन की वजह से मार्केट बहुत बुरा था तो उसको कार बहुत सस्ते प्राइस में बेचनी पड़ी और जो पैसे उसे गाडी को बेचकर मिले उसको उसने फौरन होम लोन की ईएमआई के लिए भर दिया। 

और यही टाइम पर जब उसको लग रहा था कि इससे बुरा और क्या हो सकता है कि उसको जॉब से निकाल दिया गया और उसने अपनी कार को सेल कर दिया। तभी उसको खबर मिलती है कि उसके एक फैमिली मेंबर को कोरोना वायरस हो गया है। 



सनी के पास इंश्योरेंस था लेकिन वो इंश्योरेंस उसकी कंपनी ने प्रोवाइड किया था और क्योंकि उसे जॉब से निकाल दिया गया तो उसका इंश्योरेंस भी अब नहीं रहा और इसीलिए उसे अपनी वाइफ की ज्वेलरी बेचकर और जो भी थोड़े बहुत पैसे उसने यहां सेव किए थे वो सारे मेडिकल एक्सपेंस में खर्च करने पड़े। मतलब अब सनी पूरी तरह ब्रोक हो चुका था और उसकी हालत काफी खराब थी क्योंकि उसको हर महीने होम लोन की ईएमआई भरनी थी और उसको जॉब भी नहीं मिल रहा था,क्योंकि सब कंपनी इस टाइम पर लोगों को निकाल ही रही थी, हायर कोई नहीं कर रहा था। 

तो उसका एक एक दिन बहुत मुश्किल से गुजर रहा था और इसीलिए वो थोडा डिप्रेशन में भी चला गया। यहां तक कि उसके दिमाग में सुसाइड के भी खयाल आने लगे और वो अपनी लाइफ को ब्लेम करने लगा कि उसके साथ ही ऐसा क्यों होता रहता है। इसी बीच उसको रॉकी का कॉल आता है जो उसे अपने घर बुलाता है। 

अब क्योंकि ये दोनों पुराने दोस्त थे और रॉकी को सनी की खराब कंडीशन की खबर कहीं से मिल गई थी तो जब ये दोनों मिले तो उनमें कुछ पुरानी बातें हुई। सनी ने सबसे पहले रॉकी को उस झगड़े के बारे में सॉरी कहा कि वो जोश में आकर थोड़ा ढीठ हो गया था। फिर उसने बताया कि उसकी हालत बहुत खराब है। उसकी कोई मदद भी नहीं कर रहा है। 

तब रॉकी कहता है कि मैं तो इस झगड़े के बारे में कबका भूल चुका था। मैंने तो तुझे उसी दिन माफ कर दिया था। मुझे पता है कि तू दिल से बहुत अच्छा इंसान है। तो दोस्तों यहां पर आप लोगों के लिए बोनस रूल ये है कि दुनिया में पुअर और egoistic लोग यानी गरीब और अकड़ू लोग बहुत सारे हैं जिनकी जेब में इतना पैसा नहीं होता है जितना उनका ईगो होता है, तो ऐसे लोगों से बदला लेने के लिए अपना टाइम वेस्ट मत करो। लाइफ उन को खुद ही सबक सिखाकर हम्बल बना देगी और फिर आपकी सक्सेस उनके जख्म पर एक्स्ट्रा नमक डाल देगी। 

फिर रॉकी सनी को कहता है कि दोस्त मैं जल्दी रिटायर होकर अपनी वाइफ के साथ एक वर्ल्ड ट्रिप पर जाने का सोच रहा हूं और मुझे चाहिए एक ऐसा भरोसे वाला आदमी जो मेरे ऑनलाइन बिजनेस का ध्यान रख सके। मुझे पता है कि तुम दिल से काम करते हो, इसलिए मैं सोच रहा हूं कि मैं तुम्हें ₹15,000 की मंथली सैलरी पर रख लूं। 

यह सुनकर सनी काफी खुश हुआ, लेकिन शॉक भी। खुश इसलिए क्योंकि उसने चैन की सांस ली कि उसके सर से वह होम लोन का और वह रिकवरी एजेंट का टेंशन दूर हो गया। लेकिन शॉक इसलिए कि इतना जल्दी रॉकी रिटायर कैसे हो सकता है। अभी तो बस 28 साल का है। आठ साल पहले दोनों ने बिल्कुल एक जैसी शुरुआत की थी। लेकिन आज इन दोनों की फाइनेंशियल कंडीशन में जमीन आसमान का फर्क है। 

तो अब हम इनकी लाइफ से कुछ इंटरेस्टिंग लाइसेंस डिस्कस कर लें । दोस्तों अगर आपने स्टोरी में ध्यान दिया है तो सनी की फाइनेंशियल कंडीशन खराब होने का सबसे पहला और सबसे मेन रीजन था लोन। सनी लोन को मैनेज नहीं कर पाया और इसका रीजन ये था कि स्कूल से हमको अच्छी जॉब, अच्छा करियर, अच्छा इंटरव्यू कैसे देना है इन सबकी एजुकेशन मिलती है। लेकिन लोन को कैसे मैनेज करना है वो नहीं सिखाया जाता है। 

इसकी वजह से मेजॉरिटी लोग इस मामले में फेल हो जाते और अल्टीमेटली फाइनेंशियल फ्रीडम उनके लिए हमेशा एक सपना ही रह जाता है। और सबसे इंटरेस्टिंग बात ये है कि जैसे ही कोई यंगस्टर अपनी टीम में एक अच्छी जॉब लेता है तो सबसे पहले ये बैंक वाले उसे क्रेडिट कार्ड की बात करने के लिए फोर्स करते हैं। 

क्योंकि उस एज में आपकी जो हैबिट और आपका जो शॉपिंग का स्टैंडर्ड सेट होता है तो फिर वो आप उसे लाइफ टाइम तक मेंटेन रखते हो। मतलब अगर आप बहुत ज्यादा एक्सपेंसिव और ब्रांडेड कपड़े पहनने की हैबिट डालते हो तो फ्यूचर में आप उसे आसानी से डाउनग्रेड नहीं करोगे और ये आपकी लाइफ का वो टाइम होता है जब लोगों के डिजायर सबसे ज्यादा हाई होते और आपको लोन के डेंजर के बारे में पता भी नहीं होता है। 

इसलिए बिल्कुल अपनी शुरुआत से लोग लोन को एक नॉर्मल चीज समझने लगते हैं और फिर अपनी पूरी जिंदगी में अपनी कंपनी के बॉस के साथ वो अपने बैंक वालों को भी बॉस बना देते हैं। अब सोसाइटी, गवर्नमेंट और बाकी सब लोग इसे प्रमोट इसलिए करते हैं क्योंकि इस ट्रैप  से गवर्नमेंट, बैंकर्स और कंपनीज का फायदा होता है। अगर आप हमेशा debt में या ज्यादा लोन में रहोगे तो आप ज्यादा काम करोगे जो इकनॉमी के लिए अच्छा है। 

मतलब गवर्नमेंट के लिए भी, क्योंकि आप जीडीपी बढ़ा रहे हो। कंपनी के लिए भी अच्छा है क्योंकि उनके कस्टमर्स बढ़ रहे हैं। लोग ईएमआई पर चीजें खरीद रहे हैं। उनका बिजनेस और सेल्स बढ़ता रहेगा और बैंकर्स के लिए भी अच्छा है क्योंकि आप ईएमआई पर कर दे रहे हो और उनको इंटरेस्ट दे रहे हो। बस यह आपकी पर्सनल लाइफ और फाइनेंशियल फ्रीडम के लिए अच्छा नहीं है। बाकी सबके लिए अच्छा है। 

जब आप लोन लेते हो तो आप कंपाउंडिंग पावर के खिलाफ जाते हो और इसके डेंजरस इफेक्ट जो  कि किस तरह आपकी फाइनेंशियल लाइफ को डिस्ट्रॉय करता है, जो लोग कभी समझ भी नहीं पाते। दोस्तों जब आप लोन के ट्रैप से अपने आप को बचा लेते हो तो उसके बाद सवाल यह उठता है कि उन पैसों से हमें करना क्या है? क्योंकि काफी सारे लोग लोन लेने के लिए भी बहाने देते कि उससे उनके खर्चे कंट्रोल में रहते हैं। 

जैसे अगर किसी की सैलरी ₹30000 पर मंथ की है और उसको ₹14000 की  ईएमआई पे करनी है तो ही वह अपने बचे हुए 16,000 से अपना गुजारा करेगा। अगर लोन नहीं होगा तो पूरे के पूरे खर्च कर देगा और उसको पता भी नहीं चलेगा। तो ये एक बहुत ही पुअर तरीका है अपने एक्सपेंसेज कंट्रोल करने का। 

सही तरीका यह है कि आप अपने एक्सपेंसेज खुद से डिसिप्लिन के साथ कंट्रोल करो जिसके लिए मैं आपको एक सिंपल फॉर्मूला बताता हूं वो है बजटिंग रूल। इस रूल के हिसाब से आपको अपनी इनकम का 70% अपने घर के खर्चे के लिए यूज करना चाहिए। 20% पर्सनल इन्वेस्टमेंट के लिए जैसे कि स्टॉक मार्केट या म्यूचुअल फंड और बाकी के 10% को आपको अपने एंटरटेनमेंट के लिए छोड़ देना चाहिए।  

फिर धीरे धीरे करके आप इस 20 परसेंट के इन्वेस्टमेंट को बढाते रहो। जैसे कि हमारी स्टोरी में रॉकी ने अपनी सैलरी का फिफ्टी परसेंट सेव करके इन्वेस्ट किया था तो यह फिफ्टी फिफ्टी था जो इस रूल से ज्यादा अच्छा है। क्योंकि इसमें सबसे बड़ा पोर्शन इन्वेस्टमेंट में जा रहा है। और जो लोग इस रूल को फॉलो करते हैं तो इस रूल के हिसाब से वैसे लोग 10 साल के अंदर ही अपना फाइनेंशियल फ्रीडम अचीव कर लेते हैं।  

फिर फाइनेंशियल फ्रीडम का तीसरा रोल यह है कि आज भी मेजॉरिटी मिडिल क्लास लोग स्टॉक्स को रिस्की समझते हैं कि यहां पर स्टेबल रिटर्न नहीं मिलते। जबकि रियलिटी यह है कि वही मिडिल क्लास इंसान एचयूएल या टीसीएस जैसी कंपनी में जब जॉब कर रहा होता है, तो उसे हर महीने मिलने वाली सैलरी स्टेबल लगती है। लेकिन उसी कंपनी के स्टॉक का डिविडेंड लोगों को रिस्की लगता है। 

जबकि इंटरेस्टिंग बात यह है कि रिसेशन के दौरान कंपनी ज्यादातर एंप्लॉयीज को निकाल कर कॉस्ट कटिंग करती है, लेकिन अपने शेयरहोल्डर्स के डिविडेंड को कम नहीं करती है। जैसे एग्जांपल के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने covid के नाम पर यह चीज एकदम खुल्लमखुल्ला की थी। एक तरफ उन्होंने एंप्लाइज को निकाला और दूसरी तरफ डिविडेंड के रेट को बढ़ाया, तो सनी को सैलरी एक कंपनी से मिल रही थी और रौकी को डिविडेंड 10 -15 कंपनी से मिल रहे थे। 

तो आप लोग मुझे बताओ कौन ज्यादा फाइनेंशियली सिक्योर है? तो इसीलिए जॉब सिक्योरिटी रियल नहीं होती है। फाइनेंशियल सिक्योरिटी रियल होती है, जो हमेशा आपके हाथ में होती है। जॉब सिक्योरिटी हमारे हाथ में होती ही नहीं है। फिर फाइनेंशियल फ्रीडम का फोर्थ रूल है कंपाउंडिंग। इसके ऊपर इंटरनेट में बहुत सारे वीडियोज बनाए गए हैं लेकिन इसके बाद भी बहुत लोगों को यह समझ नहीं आता है। 

इसका प्रूफ यह है कि लोग आज भी इन्वेस्टिंग delay कर देते हैं कि वह उसे कल कर देंगे या फिर कभी और कर लेंगे। क्योंकि जिसको सच में कंपाउंडिंग के पावर के बारे में पता है तो वह अपनी इन्वेस्टमेंट पहली फुर्सत में करेगा और debt को हमेशा अवॉइड करेगा। 

क्योंकि फाइनेंशियली स्मार्ट लोग अपनी इन्वेस्टमेंट जल्दी से जल्दी करते हैं और लोन अगर उनको लेना भी होता है तो उसे पोस्टपोन करते हैं कि चलो कल कर लेंगे या फिर कभी फ्यूचर में। लेकिन फाइनेंशियल poor  लोग इसका बिल्कुल उल्टा करते हैं । वो इन्वेस्टमेंट को डिले करते और लोन जल्दी से ले लेते हैं। 

इंडिया में अगर आप 50-60 साल की एज तक काम कर रहे हो तो उसे बहुत अच्छा बताया जाता है कि देखो आपके डैड कितनी मेहनत करते हैं। जब मन नहीं भी करता है तो भी जॉब पर जाते हैं । उनको फीवर होता है तो भी वो जॉब पर जाते हैं। जब बहुत तेज बारिश होती है तो भी वो जॉब पर जाते हैं क्योंकि घर चलाने के लिए हमें काम तो करना पड़ेगा ऐसी बहुत सारी फैमिली की वैल्यू होती है जिसमें कुछ गलत नहीं है। 

क्योंकि जो चीज हम बचपन से देखते हैं हम उसी को कॉपी करते। अब दोस्तों पैसों से आप बहुत सारी चीजें खरीद सकते हो लेकिन सबसे इंपॉर्टेंट चीज जो आप इसे खरीद सकते हो वह फाइनेंशियल फ्रीडम और ये एक ऐसी चीज है जो इतना क्लियरली दिखती नहीं है अगर आपको नहीं पता कि आपके आसपास कौन लोग फाइनेंशियल फ्री है। जैसे अगर हम किसी की न्यू कार को देखते तो उसे कॉपी करना बहुत ईजी है। 

पर दूसरी तरफ अगर आप किसी फाइनेंशियल फ्री इंसान को देखते हो तो उसके सर पर कोई टैग नहीं लगा होगा आपको यह बताने के लिए कि वो फाइनेंशियल फ्री है। तो आप लोग मुझे बताओ, ऐसे में मेजॉरिटी लोग किसे कॉपी करेंगे। इसलिए ये फाइनेंशियल फ्रीडम का कॉन्सेप्ट एक बहुत ही कम पॉपुलर कॉन्सेप्ट है जो सिर्फ दुनिया के एक परसेंट लोग ही अचीव कर पाते हैं। 

क्योंकि आज भी अगर आप यूट्यूब पर देखोगे तो एंटरटेनमेंट के, प्रैंक के, ब्लॉगर्स के, ट्रैवल ब्लॉगर्स के वीडियोज पर मिलियन व्यूज आते हैं । लेकिन फाइनेंशल फ्रीडम के वीडियोज पर इतने व्यूज नहीं आते क्योंकि बहुत लोगों को पता भी नहीं है। तो रॉकी क्राउड से हटके इंडिपेंडेंट अपने लिए सोचता था और क्राउड की तरह जब मेजॉरिटी लोगों के जैसा सोचोगे तो आप भी वहीं जाओगे जहां वो जा रहे हैं। 

अब दोस्तों इसके लिए हम स्कूल एजुकेशन सिस्टम को ब्लेम नहीं कर सकते क्योंकि अगर सभी फाइनेंशियली फ्री हो गए तो काम कौन करेगा? इसलिए एजुकेशन, सिस्टम और गवर्नमेंट सभी लोगों को बाय डिफॉल्ट एक अच्छे एम्प्लॉई और हमेशा रैट race में फंसे रहने के लिए ट्रैप करते हैं, क्योंकि मार्केट में हमेशा ज्यादा रिक्वायरमेंट इन्हीं लोगों की होगी। 

किसी भी कंपनी में इनवेस्टर्स बहुत कम होते हैं और एम्प्लॉइज बहुत ज्यादा होते हैं। मतलब इन्वेस्टर और बिजनेसमैन दुनिया में सिर्फ एक पर्सेंट होते और बाकी के एम्प्लॉयी होते, तो चॉइस आपकी है कि आपको कौन से साइड में रहना है। 

Vinod Pandey

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